जब मैं छोटा था, देखता कि वे सभी लोग, जिन्हें मैं जनता था, किसी संत या धार्मिक ग्रंथों और पुस्तकों में लिखी किसी भी बात को लेश मात्र भी शक द्रष्टि से नहीं देखते थे. उनकी कही या उनमें लिखी सभी बातों को बिना कोई तर्क किये ऐसे ही मान लेते थे. मेरे पढ़े–लिखे भाई भी इसके विपरीत नहीं थे. मेरे परिवार में मेरी मौसी जी ही भिन्न-भिन्न प्रकार के व्रत रखती थीं, जैसे हर सात दिन में ब्रहस्पति भगवान का व्रत, हर पंद्रह दिन में प्रदोष व्रत, हर शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत, और भी जितने व्रत बीच बीच में पड़ते रहते, वे सभी. प्रतिदिन अखबारों में निकला ही करता था कि आज अमुक पर्व है, आज के दिन व्रत रखने वालों को यह फल प्राप्त होता है, उनसे भगवान प्रसन्न होते हैं, और हमारे यहाँ उसका व्रत रख लिया जाता था! वह प्रतिदिन करीब एक घंटे से भी अधिक पूजा करती थीं. इसी प्रकार मेरी माँ भी थीं! पूरे क्षेत्र का वातावरण कुछ इस प्रकार का था कि उस व्यक्ति को सबसे अधिक सम्मान की द्रष्टि से देखा जाता था, जो जितना अधिक धर्म–कर्म और पूजा-पाठ करता था! इसी माहौल में मेरा जन्म हुआ था. मुझमें भी यही संस्कार डाले गए थे. संस्कार स्वरुप मैं और भी अधिक धार्मिक प्रवृत्ति का हुआ! ईश्वर के प्रति गहरी आस्था तो थी ही, और जैसा कि बताया अधिक धार्मिक अधिक अच्छा माना जाता था, शायद इसलिए मैं इस ओर और अधिक आकर्षित हुआ.

पृथ्वी को बचाते हुए वाराह भगवान
बचपन में वैसे भी कोई काम धंधा तो होता नहीं था, न ही स्कूल में कोई ज्यादा काम मिलता था, सो जो किताबें घर में दिखती, उन्हें ही पढ़ा करता! घर में धार्मिक पुस्तकों के अतिरिक्त और कुछ होता भी न था. इसी क्रम में एक पुस्तक ‘दशावतार‘ पढ़ी थी. इसमें भगवन विष्णु के वाराह अवतार के सम्बन्ध में बताया गया था कि जब पृथ्वी किसी राक्षस के प्रभाव से समुद्र में डूब रही थी, तो विष्णु भगवान ने वाराह अवतार लेकर पृथ्वी को अपने दो बड़े दांतों से उठाकर उसे डूबने से बचाया था. किताब में इसका चित्र भी दर्शाया गया था. मैं तब काफी छोटा ही था, कक्षा 3 में ही था शायद, मगर टीवी, अख़बार इत्यादि से इतना जानने लगा था कि पृथ्वी कैसी है और खाली आकाश में कैसे बिना किसी सहारे के टिकी है! सो इन दोनों ही बातों का सच होना संभव नहीं था. समुद्र पृथ्वी के अन्दर है, फिर पृथ्वी समुद्र में कैसे डूब सकती है? यह विरोधाभाषी बातें थीं, और यही मेरे जीवन का पहला अनुभव था धर्म–ग्रंथों पर अविश्वास करने का!

Alhazen
ग्यारहवीं शताब्दी में अरब के महान दार्शनिक और वैज्ञानिक इबेन अल्हेजेन (Ibn Al-Haytham or Alhazen) वो पहले इन्सान थे जिन्होंने गलती पकड़ने का तरीका इजात किया था. उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था, “सच को ढूंढना मुश्किल है और सच का रास्ता और भी मुश्किल. सच्चाई की खोज करने वाले को फैसला करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और न ही पहले की लिखी किताबों पर आँख मूंदकर यकीन करना चाहिए. उन किताबों में लिखी बातों को हर प्रकार से सवाल पूछकर जांचना चाहिए. सिर्फ तर्क और प्रयोगों में साबित बातों को ही मानना चाहिए, किसी की कही बातों को नहीं. एक बात हमेशा याद रखना चाहिए कि हर इन्सान गलतियों का पुतला होता है, और हम तो सच की खोज में निकले हैं. इसलिए हमें अपनी खोज के दौरान खुद अपने आप पर भी शक करना है और खुद से भी सवाल पूछना है ताकि हम लापरवाही और पूर्वाग्रह के शिकार न हो पायें. इस रास्ते पर चले तो सच्चाई तुम्हारे सामने होगी.” ये तरीका विज्ञान का तरीका है, इतना ताकतवर कि आप अगर आज विदेश में बैठे मित्र से बात कर पाते हैं तो इस तरीके के कारण ही! इसने हमारी औसत उम्र दुगनी कर दी और रोबोट को सौरमंडल से बाहर भेज दिया!

Abraham Kovoor
मगर इस तरीके को उपेक्षित करते हुए हमारे देश और विदेशों में भी अन्धानुकरण करने वाले लोगों की संख्या बहुतायत में पायी जाती है! ईमानदार आदमी अपनी दिनचर्या ईमानदारी के कार्यों से चलाता है और बेईमान आदमी मेहनत करने वालों के साथ धोखा करके. इस सूचि में प्रचारक, पादरी, संत, महंत, सिद्ध गुरु, स्वामी, योगी, ज्योतिषी और पण्डे इत्यादि शामिल हैं, जो चमत्कार, योग शक्ति, जादू–टोना, प्रेत, टेलीपैथी एवं धार्मिक पाखंडों से भोले–भाले लोगों को लूटते हैं. डॉ कोवूर के उम्रभर इसी विषय पर किये गए शोध का निष्कर्ष था कि जो भी लोग किसी अलौकिक शक्ति होने का दावा करते हैं, वे या तो धूर्त होते हैं या फिर मानसिक रोगी! डा कोवूर ने लगभग पचास वर्षों तक हर प्रकार के मानसिक, अर्धमानसिक एवं आत्मिक चमत्कारों की गहराई तक खोज की और अंत में इस निष्कर्ष तक पहुंचे कि ऐसी बातों में लेश मात्र भी सत्य नहीं होता. इस संसार के मनोचिकित्सकों में डा कोवूर अकेले ऐसे आदमी थे, जिनको इस क्षेत्र में खोज करने के लिए पीएचडी की डिग्री प्राप्त हुई. भूत–प्रेतों की खोज में वह भूत घरों में सोये और कब्रिस्तानों में उन्हें खोजने की कोशिश की. इन्होने अपने जीवन के सभी महत्वपूर्ण कार्य ‘अशुभ मौकों‘ पर शुरू किये. इन्होने अपने समय में एक लाख श्रीलंकन रुपये, जो की इनकी कुल संपत्ति थी, को भी दांव पर लगा दिया था. इन्होने चुनौती दी थी कि संसार का जो भी व्यक्ति बिना धोखे की स्थिति में कोई चमत्कार या अलौकिक शक्ति का प्रदर्शन करेगा, उसे वह एक लाख श्रीलंकन रुपये देंगे. यह चुनौती उनकी म्रत्यु तक जारी रही, मगर कोई भी इसे न जीत सका.
झूठ को लोगों तक पहुँचाने का सबसे बड़ा माध्यम है समाचार पत्र. इसमें हम कभी किसी के पुनर्जन्म की घटना पढ़ते हैं, तो कभी किसी किसी उलटे पैर वाली चुड़ैल की, कभी किसी की आत्मा शवदाह संस्कार के पहले पुनः शरीर में प्रवेश कर जाती है, तो कभी कोई आत्मा के साथ बात करने वाला मिल जाता है. चूकी यह सभी बातें समाचार पत्रों में छपती हैं इसलिए हम ज्यादा शक न करते हुए इसपर विश्वास कर लेते हैं. मगर वास्तव में अगर इनकी पड़ताल की जाती है, तो कई घटनाएं पूरी तरह से झूठ होती हैं, तो कई घटनाएँ किसी विशेष मकसद से प्रकाशित करवाई जाती हैं. कुछ घटनाओं में जिसकी खबर होती है, वो ही झूठी प्रतिष्ठा पाने के उद्देश्य से खुद कहानी गढ़ता है. इस ब्लॉग में इसी प्रकार की और भी ढेर सारी कहानियों का डी एन ए टेस्ट किया जायेगा. आपको उस कहानी के पीछे का असली कारण बताया जायेगा. हमारा प्रयास रहेगा कि इसमें हर प्रकार के अन्धविश्वास को शामिल किया जाए, और आपको तर्कशील बनाने में मदद की जाए!
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