“किसी व्यक्ति का विश्वास उसके अपने प्रयोगों के आधार पर निर्मित होता है! क्या किसी व्यक्ति के ग्रहण किये अनुभव मात्र इसलिए छोड़ देना उचित है कि वह अनुभव आप प्राप्त नहीं कर सके? रात्रि में जब मैं आकाश में देखता हूँ, तो मुझे एक भी तारा नहीं दिखाई देता, क्योंकि मैं अंधा हूँ! मुझसे आगे वाली सीट पर बैठा व्यक्ति यदि आकाश में लाखों तारे देख लेता है, तो क्या यह उचित होगा की मैं मैं उसपर यह आरोप लगाऊं कि वह झूठ बोल रहा है? यदि कोई व्यक्ति दूरबीन से और भी अधिक दूर देख ले और मुझे उनके बारे में बताये तो क्या यह उचित होगा की मैं उसे एक कल्पना कह दूं? साधारण व्यक्ति में जोइलूइस या सैंडो की तरह शक्ति नहीं होती! इन शक्तिशाली व्यक्तियों में रामानुजन या आइन्स्टीन की तरह बुद्धि नहीं होती! यदि ऐसा है तो क्या यह संभव नहीं है, कि कुछ व्यक्तियों में दूसरों की अपेक्षा अलौकिक एवं आध्यात्मिक अनुभव ज्यादा हों? मेरा यही विश्वास मुझे शांति और प्रसन्नता प्रदान करता है! इसी तरह यदि दूसरे भी अपनी शांति व प्रसन्नता किसी और विश्वास में से प्राप्त करते हों तो मैं उनको ठेस पहुँचाने का प्रयत्न क्यों करूँ?“
श्री के.पी. केशवा मैनन जो कि भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और बाद में श्रीलंका के भारतीय राजदूत भी थे, ने अपने 83वें जन्मदिवस के अवसर पर एक भारतीय पत्रिका के लिए लेख लिखा था, यह उसी का एक छोटा सा भाग है! श्री मैनन एक लेखक और पत्रकार भी थे! अपने बुढ़ापे में श्री मैनन जो भी लिखते थे, लाखों भारतीयों द्वारा उसे बड़ी उत्सुकता से पढ़ा जाता था, उनके शब्दों को बड़ा विद्वतापूर्ण समझा जाता था! श्री मैनन नें ऊपर जो कुछ भी लिखा है, बहुत से बुद्धिमान और विचारशील व्यक्तियों को यह एक मान्य दलील लगेगी! इसीलिए आइये अब हम मनोवैज्ञानिक ढंग से मनुष्य के विश्वास व मानसिक अनुभवों की जांच करें!
मनुष्य में अनुभव दो प्रकार के होते हैं, वास्तविक अनुभव और भ्रमात्मक अनुभव!
बहिर्मुखी अनुभव सत्य व वास्तविक होते हैं! तर्क व प्रयोगों द्वारा इनकी पड़ताल करके इनकी वास्तविकता का पता लगाया जा सकता है! जैसे दूरबीन या नंगी आखों से तारे देखना, इलेक्ट्रान का होना! अंतर्मुखी अनुभव सत्य तो हो सकते हैं, मगर आवश्यक नहीं कि वह वास्तविक भी हों! कई परिस्थितियों में तर्क व प्रयोगों द्वारा इनकी पड़ताल भी नहीं की जा सकती! (यहाँ सत्य का अर्थ है कि कहने वाला अपनी पूरी जानकारी और समझ से सत्य बोल रहा है जबकि वास्तविक का अर्थ है उसके द्वारा बताई जा रही घटना वास्तव में घटित हुई है!)
उदाहरणतः एक छोटे बच्चे को नींद में बिस्तर पर मूत्र करने की बीमारी है! उसकी नासमझ माँ इस बात के लिए उसे रोज दण्डित करती हैं! इस घटना की वास्तविकता क्या है? यही कि जब लड़के का मूत्राशय भर जाता है तो उसके मस्तिष्क में इसकी सूचना पहुँचती है! यह सूचना बच्चे में एक सपना उत्पन्न करती है! बच्चा सपने में बिस्तर से उठकर मूत्रालय जाता है और वहां मूत्र त्यागता है! मगर असल में वह बिस्तर पर ही मूत्र त्याग देता है! यदि प्रातःकाल उठकर बच्चे के जागने से पूर्व ही उसका गीला बिस्तर बदलकर उसे सूखे बिस्तर पर सुला दिया जाये, तो जागने पर वह अपने बिस्तर को सूखा देखकर प्रसन्न हो जायेगा और अपनी माँ से उत्सुकतापूर्वक जाकर कहेगा, “माँ, आज रात में मैंने बिस्तर पर मूत्र नहीं किया, बाहर जाकर मूत्रालय में किया था!” बच्चा बिलकुल सत्य बोल रहा है, मगर यह वास्तविकता नहीं है! यह सत्य इसलिए है क्योंकि यह बच्चे का कल्पित अनुभव है! मगर जांच करने पर यह पता चल जायेगा कि उसने बिस्तर पर ही मूत्र त्यागा था!
भ्रमात्मक अनुभव तीन प्रकार के होते हैं—
१. ज्ञानेन्द्रियों से उत्पन्न भ्रम, २. मानसिक भ्रम, ३. झूठे विश्वासों से उत्पन्न भ्रम
- ज्ञानेन्द्रियों से उत्पन्न भ्रम : पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होने के कारण यह भी पांच प्रकार के होते हैं– दिखाई देने वाले भ्रम, स्वाद वाले भ्रम, सुनने वाले भ्रम, स्पर्श वाले भ्रम व सूंघने वाले भ्रम! गर्मी के दिनों में सड़क पर पानी का दिखाई देना, रेगिस्तान की मरीचिका आदि द्रष्टि भ्रम हैं! आपने ध्यान दिया होगा, पक्की सड़क पर जाते हुए गर्मी के दिनों में दूर से पानी दिखाई देता है, मगर जैसे ही उसके पास जाओ वहां कोई पानी नहीं होता, अब पानी और दूर दिखाई देने लगता है! यह मात्र एक द्रष्टि भ्रम होता है, जिसके कारण को भौतिक विज्ञान के माध्यम से समझा जा सकता है! इसीप्रकार करौंदे के पत्ते को खाने के बाद पानी पीने से पानी मीठा लगता है, मीठा बिस्कुट खाने के बाद चाय मीठी नहीं लगती जबकि न तो पानी मीठा होता है न ही चाय फ़ीकी होती है, यह स्वाद भ्रम है!
बहुत से लोग जिन्हें भूत–प्रेत, देवी–देवता या परियों आदि में विश्वास होता है, उनको अँधेरे में यह सब मात्र द्रष्टि भ्रम के कारण ही दिखाई पड़ते हैं! उस डर के कारण, जो इन लोगों के मन में बचपन में ही बैठा दिया जाता है, ये लोग पास जाकर उसकी जांच करने का साहस ही नहीं करते!
- मानसिक भ्रम : मानसिक भ्रम चार प्रकार के कारणों से उत्पन्न हो सकते हैं– भौतिक, रासायनिक, जीव वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक!
भौतिक : आज विज्ञान के द्वारा मनुष्य में कृत्रिम भावनाएं उत्पन्न की जा सकती हैं! मतलब डर, भूख, नींद, प्रेम, उत्सुकता, ख़ुशी, दोस्ती या नफ़रत मात्र मस्तिष्क के किसी भाग को तरंगों के द्वारा उत्तेजित करके उत्पन्न किया जा सकता है! यही प्रक्रिया ढोलक की आवाज, तालियों की आवाज, संगीत और नृत्य, मंदिरों में पूजा, विभिन्न सभाओं इत्यादि के द्वारा भी संपन्न की जा सकती है! यह सभी क्रियाएं मस्तिष्क के तंत्र को उत्तेजित करती हैं, जिससे उसमें मानसिक भ्रम उत्पन्न होनें लगता हैं और वह व्यक्ति आवेशित हो जाता है!
रासायनिक : चरस, अफीम, धतूरा, गांजा, हेरोइन, L.S.D. जैसे पदार्थ मस्तिष्क को उत्तेजित करते हैं और व्यक्ति को मानसिक भ्रम उत्पन्न हो जाता है! L.S.D. के खोजकर्ता अल्बर्ट हाफमैन (Albert Hofmann) ने L.S.D. की थोड़ी सी मात्रा लेने के उपरांत उसके शक्तिशाली प्रभाव के बारे में कुछ इस तरह बताया, “…मामूली चक्कर और बेचैनी थी! मैं लेट गया और अत्यंत उत्तेजित काल्पनिक अवस्था में डूब गया! सपने जैसी स्थिति में बंद आँखों से मैं दिन के प्रकाश को स्पष्ट देख रहा था! मैं असाधारण आकार की तीव्र चमक और जल्दी जल्दी बदलते हुए रंगों वाली शानदार तस्वीर को लगातार देख रहा था! लगभग दो घंटे बाद स्थिति सामान्य हो गयी!” इन जैसे पदार्थो की बहुत ही सूक्ष्म मात्रा (एक मिलीग्राम का करोडवां हिस्सा) भी मानसिक उन्माद उत्पन्न करने के लिए काफी होता है! ऐसे रासायनिक पदार्थ मानसिक विकार वाले लोगों के खून में पाए जाते हैं! कभी कभी कुछ पुजारी नशीले पदार्थों को प्रसाद में मिला देते हैं, जिसे दर्शनार्थियों में धार्मिक उन्माद उत्पन्न हो जाता है! इसका एक उदाहरण मद्रास के मुथुमुदाली मोहल्ले में बालाजी का एक मंदिर है! 7 मई, 1963 को यहाँ के मुख्य पुजारी को 256 किलोग्राम गांजा रखने के अपराध में गिरफ्तार किया गया था! मुकदमें के दौरान पता चला कि यह पुजारी प्रसाद में गांजा मिलाया करता था, जिससे लोगों में धार्मिक उन्माद उत्पन्न किया जा सके!
जीव वैज्ञानिक : बेरी–बेरी रोग विटामिन बी की कमी से होता है! पागलों जैसा आचरण इसका महत्वपूर्ण चिन्ह है! विटामिन की ही कमी के कारण उत्पन्न रोग पिलरागा मानसिक विकार का कारण बन सकता है! ऐसे व्यक्तियों को विटामिन की पूरी मात्र देकर पूर्व स्थिति में लाया जा सकता है! विटामिन की ही तरह शरीर में कुछ उत्पन्न होने वाले उत्तेजक रसों के असंतुलन से भी मानसिक विकार जन्म ले लेते हैं! वे व्यक्ति जिनमे पैराथायराइड ग्रंथि द्वारा पैदा किये गए रस की कमी होती है, भी गंभीर मानसिक भ्रम के शिकार हो जाते हैं! डॉ कोवूर एक बताते हैं, “मेरी एक भतीजी जब भी आकाश की तरफ देखती तो उसे मेरी मृत माँ की आत्मा दिखाई देती! मैं उसे केरल के अपने पैतृक घर से श्रीलंका ले आया! पूरी तरह जांच करने पर पता चला कि उसकी पैराथाईराइड ग्रंथि में खराबी थी! इस खराबी को दूर करने के लिए उसे कैल्शियम दिया गया और इसके साथ ही उसे आकाश में मेरी माँ की आत्मा दिखाई देनी बंद हो गयी!“
मनोवैज्ञानिक : मनोविज्ञान में एक माना हुआ सत्य है कि मानव मन पर सुझाव का प्रभाव होता है! यह सुझाव उसे नींद या अर्ध नींद में दिए जा सकते हैं! जैसे बहुत सारे मानसिक विकारों को हिप्नोटिज्म के द्वारा ठीक किया जा सकता है, उसी प्रकार नींद में सुझाव से भी बहुत से रोग ठीक किये जा सकते हैं! धार्मिक विश्वास एक धीमे व अनवरत चलने वाले हिप्नोटिज्म जैसे होते हैं! भूत से प्रभावित व्यक्तियों की तरह व्यव्हार और बदली हुई आवाज में बातें करने को मनोविज्ञान में ग्लोसोलालिआ (Glossolalia) कहा जाता है! पूजा और शैतानी नृत्य के दौरान मोहक मूर्छा, विश्वास, पूजा, प्रार्थना, धार्मिक यात्रा, आर्शीवाद, बलि, टोना, पवित्र पानी पीना इत्यादि सब बातें मात्र हिप्नोटिज्म से किसी व्यक्ति के मन पर सुझावों के अतिरिक्त कोई प्रभाव नहीं रखती! गहन समाधि स्वयं पर हिप्नोटिज्म का प्रभाव ही है! यह धीमी गति से चलने वाली प्रक्रिया है! समाधि के द्वारा व्यक्तियों के प्राप्त किये झूठे अनुभव हमेशा उसके धार्मिक भ्रमों के अनुसार ही होते हैं! एक ईसाई को समाधि के द्वारा ‘जीहोवा‘ के दर्शन हो सकते हैं जो स्वर्ग में सोने के सिंहासन पर विराजमान है, उसके दायीं तरफ ईसा मसीह है, उसके चारो तरफ सुन्दर पंखों वाले देवता गीत गा रहे हैं! एक हिन्दू को समाधि के द्वारा ब्रह्मा के दर्शन हो सकते हैं जिनके तीन या पांच सिर है, जो कमल में विराजमान हैं! LSD, गांजा, अफ़ीम इत्यादि इस प्रकार के झूठे द्रश्य उत्पन्न कर सकते हैं! कुछ व्यक्ति गहरी समाधि के द्वारा क्रिप्टोम्नेशिया (Cryptomnesia) नाम की बीमारी के शिकार हो जाते हैं! इस बीमारी वाले व्यक्ति को पागलों जैसा यह विश्वास हो जाता है कि वह दैवीय शक्तियों वाला व्यक्ति है! अनपढ़ और भोले लोग जब मानसिक बीमारी के शिकार होते हैं, तो उन्हें पागल घोषित कर दिया जाता है! वहीँ अगर किसी बुद्धिमान और चालाक व्यक्ति को मानसिक बीमारी घेर ले तो वह अपने श्रोताओं या पाठकों को यह विश्वास दिला देता है कि उसमे ब्रह्मज्ञान, अंतिम सच्चाई और परमात्मा में लीन होने वाले गुण प्राप्त हो गए हैं! ऐसे व्यक्ति आम तौर पर किसी धर्म के प्रचारक या उसकी नींव डालने वाले बन जाते हैं!
- झूठे विश्वासों से उत्पन्न भ्रम : यह बचपन में धर्म के प्रति विश्वास पैदा करने के कारण होता है! भूत–प्रेत, शैतान, परियां, फ़रिश्ते, ज्योतिष, श्राप, पवित्र जल, शुब समय, शुभ स्थान, शुम वस्तुए, शगुन, अपशगुन, स्वर्ग, नरक इत्यादि झूठे विश्वास हैं!
जैसा की श्री मैनन नें कहा है कि कुछ व्यक्ति अपने मन की प्रसन्नता दुसरे अन्धविश्वास से प्राप्त करते हैं, ठीक ऐसे ही परिणाम L.S.D., गांजा, अफीम का प्रयोग करके भी प्राप्त किये जा सकते हैं! परन्तु प्रश्न यह नहीं है कि किस तरह का प्रयोग शांति या प्रसन्नता प्रदान करता है, बल्कि प्रश्न तो यह है कि क्या यह सत्य है?
संदर्भ ग्रंथ: 1. अब्राहम कोवूर की पुस्तक “और देव पुरुष हार गए”, 2. विकिपीडिया