अरुण सिंघो का घर एक पागल खाना था! पिछले आठ महीनों से एक दुष्ट आत्मा नें अरुण सिंघो, उसकी पत्नी पोदी हैमी और इकलौती पुत्री प्रेमावती का जीना मुश्किल कर दिया था! पांच बार चौकियां लगाने के बाद भी यह आत्मा उनके घर से नहीं निकली थी! रेत व पत्थर प्रत्येक स्थान पर फेंक दिए जाते थे! तेल के दीपकों से जब कोई आस–पास भी नहीं होता था तो उससे लपटें निकल आती थीं! अदृश्य हाथों नें पुत्री के केश काट लिए थे! आत्मा के लिखे गए पत्र पता नहीं कहाँ से आ जाते थे! वस्तुएं हवा में उड़ती हुई नजर आती थीं! अलमारियों में बंद कपड़े कैंची से काट दिए जाते थे! रहस्यपूर्ण व अद्भुत सी लिपियाँ दीवारों पर लिखी जाती थीं! उबलते हुए चावलों में कोई रेत डाल जाता था!
जांच के लिए प्रस्थान
अरुण सिंघो के घर से भूत शांत करने के लिए मेरी सहायता लेने के लिए कोसगामा निवासी डी. वाई. राणा सिंघे की तरफ से की गयी अपील के जवाब में 25 नवम्बर, 1963 दिन सोमवार को मेरे व मेरी पत्नी के साथ संवाददाताओं की एक टोली ने कोलम्बो को प्रस्थान किया! रास्ते में हम माईगोडा महाविद्यालय के पास अरुण सिंघो के घर पनालूवा का रास्ता पूछने के लिए ठहरे! स्कूल के प्रिंसिपल श्रीमान पी. बीरा सिंघे भूत वाले घर तक हमें कार में ले जाने के लिए तैयार हो गए! हम माइगोडा जंक्शन से ऊंची सड़क से नीचे आये और एक चाय की दूकान के सामने पनालूवा सड़क के तीसरे मील पत्थर के पास ठहर गए! जो ग्रामीण लोग वहां इकठ्ठा हो गए थे, उन्होंने हमें बताया कि अरुण सिंघो के घर पहुँचने के लिए हमें चावल व रबड़ के खेतों में से आधा मील पैदल चलना पड़ेगा!
जिस दिन से अरुण सिंघो के घर में पागल कर देनी वाली इन गतिविधियों की चर्चा पड़ोसी गावों में पहुंची थी, इस चाय दूध वाले की दुकान का काम काफी बढ़ गया था! सारा दिन वहां से पुरुष, स्त्रियाँ व बच्चे भूत वाले घर जाकर अपनी उत्सुकता को संतुष्ट करने के लिए गुजरते थे! इस चाय दूध वाली दुकान पर वे आराम कर लेते! जब हम पनालूवा वाली सड़क पर कार से गुजर रहे थे तब गाँव वाले लोगों ने मुझे पहचान लिया था, क्योंकि उन्होंने समाचार पत्रों में मेरे फोटो देख रक्खे थे! हम आगे जाने के लिए तैयार ही थे तो एक काफी बड़ी भीड़ हमारे इर्द गिर्द आ जुड़ी थी! हमारी टोली भीड़ के साथ एक लाइन में बढती जा रही थी! जब हम बढ़ते जा रहे थे तो मेरी पत्नी की अचानक चीख ने भीड़ को चौंका दिया! दो ग्रामीण स्त्रियों ने मेरी पत्नी के पैरों में चिपकी जोंक को निकालने में मदद की! वे हँस रही थीं! हम अरुण सिंघो के घर दोपहर के साढ़े तीन बजे पहुँचे!
भूत वाले घर का दृश्य
अरुण सिंघो का छोटा सा व नया घर रबर के वृक्षों के प्लाट के बीच स्थित था! घर के अन्दर जाने से पहले जो चीजें हमने देखि थी सामने वाली दीवार पर बड़े बड़े अक्षरों में सिंहली भाषा में लिखा हुआ था, “इस घर में भूत रहता है!” अरुण सिंघो नें हमें बताया, “इसे भूत ने दो महीने पहले लिखा था, घर के भीतर की दीवारों पर ऐसी और भी पंक्तियाँ हैं!” वह हमें भीतर ले गया! हम बड़े कमरे में चले गए! कोयले से कमरे की चारो दीवारें लिखितों से भरी पड़ी थीं! यद्यपि बहुत से गलतियों के साथ लिखितें सिंहली भाषण में ही थीं, लेकिन कहीं कहीं लिखतें अंग्रेजी के शब्द भी अंकित थे! अंग्रेजी के कई शब्द उलटे लिखे हुए थे जिससे ज्ञात होता था कि भूत इस विदेशी भाषा में निपुण नहीं था! लेकिन वह केवल नक़ल करने की कोशिश कर रहा था! कई जगह लिखितें सिंहली भाषा में एक दुसरे के ऊपर लिखी थीं जिससे पढ़ी नहीं जा सकती थीं!
क्या कुछ घटित हुआ था?
जब से रहस्यपूर्ण गतिविधियाँ शुरू हुईं थी, तब से लेकर घर में क्या कुछ घटित हुआ था, इसके बारे में मुझे अरुण सिंघो व उनकी पत्नी पोदी हैमी ने इकट्ठे बताना शुरू किया! “यह सब आठ महीने पहले घटित हुआ”, अरुण सिंघो ने कहा! सबसे पहले कमरे की छत से रेत गिरी! कुछ दिनों बाद पत्थर गिरने शुरू हो गए! कई पत्थरों का आकर आधी ईंट के बराबर था! इसके बाद कप, प्लेट व प्यालियाँ हवा में उडनी शुरू हुईं! यद्यपि वे अलमारी में ताला लगाकर रखी होती थीं फिर भी वे बहार फेंक दी जाती थीं! भूत ने पंद्रह कप व प्यालियाँ तोड़ दी हैं! उसनें मिटटी के कई बर्तन जमीन पर फेंककर तोड़ डाले हैं! हमने रसोई से कई बर्तन बाहर फेंके जाते हुए देखे हैं, उस समय भी जब रसोई में कोई नहीं होता था! भूत वहीँ जाता है जहाँ हमारी बेटी प्रेमवती जाती है! कई बार तेल वाले दीपकों की लपटें अद्रश्य मुहों से बुझाई जाती हैं, जबकि सभी दरवाजे और खिड़कियाँ बंद होती हैं, ताकि ऐसा हवा में ही न होता होगा! हम देश के कोने कोने में प्रसिद्ध कई भूत प्रेत निकलने वाले ला चुके हैं! यद्यपि भिन्न भिन्न टोलियों की तरफ से पांच बार चौकी लगायी गयी थी, लेकिन कष्ट उसी तरह से है! पांचवी चौकी लगाये अभी तीन दिन ही हुए हैं!
भूत ने पांच बार प्रेमवती के केश काटे हैं! उस अवसर पर पोदी हैमी नें एक संदूक खोला और कागज का एक डिब्बा लेकर आई, जिसमें केशों का एक लम्बा गुच्छा था जिसने कभी प्रेमवती के सिर को श्रृंगारा था! यह काफी लम्बा व भरी था जिससे एक पूरे आकर का जूडा बनाया जा सकता था! “भूत नें केश काटने के लिए रसोई का चाकू प्रयुक्त किया था! उसको केश काटने का उस समय पता चला जब भूत के हाथों से यह चाक़ू केशों के लच्छे के साथ फर्श पर गिरा! जब यह घटित हुआ, तो वह बहुत जोर से रोई! जब हम उसकी सहायता के लिए भागे तो हमने भी फर्श पर चाक़ू व केशों के गुच्छ दोनों गिरे हुए देखे!” पोदी हैमी बताती गयी, “मेरी कई साड़ियाँ और प्रेमवती की कई फिराकें जो कि अलमारी में ताला लगा कर बंद की हुई थीं, भूत ने फाड़ दी हैं! भूत मेरी साड़ियों से टुकड़े फाड़कर गुडिया बना लेता है! कई टुकड़े जाकेटों के नमूने तैयार करने में प्रयुक्त किये जात्ते हैं!“
एक दिन लाल मिर्च, नमक और नारियल का चूरा फर्श पर बिखरा हुआ देखा गया था! कई बार हमें भूखे ही सो जाना पड़ता था क्योंकि उबलते हुए चावलों के बर्तन में रेट डाल दी जाती थी! एक बार काटे हुए हाथों ने (केवल पंजे ही) प्रेमवती से चावलों की प्लेट खींच ली थी! जो कपड़े अलमारी से गुम हुए थे, बाद में वे छत से मिल गए थे! भूत यह संकेत देता हुआ पत्र फेंक देता था कि गुडिया कैसे संभाली जाएँ! जब जब प्रेमवती को उसके मामा राणा सिंघे के घर भेजा गया तो भूत भी उसके साथ ही गया! जब वह वहां थी तो भूत नें राणा सिंघे के मेज पर धमकी पूर्ण पत्र फेंका, कि यदि प्रेमवती को वापिस नहीं भेजा तो वह राणा टाइम पीस तोड़ देगा! भूत ने राणा सिंघे के बच्चे की दूध वाली शीशी फोड़ डाली थी! रबर के जम रहे दूध में रबर के वृक्षों के बीज फेंक दिए जाते थे! जब घर के भीतर या बहार लोग जमा हो जाते थे तो भूत उनको पत्थर मारता था! कई बार जाने पहचाने लोगों के बारे में टिप्पणियां लिखी जाती थीं! और कागज की वे चिटें उनके पास फेंक दी जाती थीं!
जाँच – पड़ताल का कार्यक्रम
घर के भीतर दाखिल हो रही भीड़ को काबू करना कठिन काम था! वे सभी उस भूत को देखने के लिए उत्सुक थे जिसको मुझे पकड़ना था! उनमें से कई यह सोंचते होंगे कि मैं घर में से भूत को गले से पकड़कर बहार आऊंगा! जितने समय तक भीड़ बहार न चली जाती, मेरे लिए जांच पड़ताल करना संभव नहीं था! समूह के सभी सदस्य हैरान हो गए, जब मेरे बहार आकर हुक्म देने से ही साड़ी भीड़ बाहर चली गयी! वे सेना की टुकड़ी की तरह आगे बढ़ते जा रहे थे, जैसे उनके कप्तान ने हुक्म दिया हो! ‘वाली’ अपना कैमरा चलाने में काफ़ी क्रियाशील था और लाइटे सभी तरफ घुमा रहा था! मैंने भीतर वाले कमरे में अपनी जांच शुरू की! मैंने उस कमरे में अपने साथ केवल तीन और आदमी रुकने की आज्ञा दी; मेरी पत्नी, तिलकरत्ने और द्विभाषिए का कार्य करने के लिए काइगोडा महाविद्यालय का प्रिंसिपल!
घर के तीन मेंबर अकेले अकेले मेरी तरफ से जांच के लिए बुलाये गए! जब एक से पूछताछ की जाती तो बाकी के दोनों मेंबर बहार के कमरे में ही बैठे रहते! मैंने इस बात पर दबाव डाला कि वे सिर्फ वही बात कहें, जो उन्होंने अपनी आँखों से खुद देखी हों! उस चीज के बारे में बात न करें, जो उन्होंने किसी से सुनी हों! मैंने अरुण सिंघो से बात शुरू करके प्रेमवती पर पहुँच कर जांच ख़तम कर दी! जांच के दौरान नीचे लिखे तथ्य सामने आये!
जांच के दौरान सामने आये तथ्य
अरुण सिंघो की आयु 62 वर्ष और पोदी हैमी की 54 वर्ष है! उनकी शादी 1948 में हुई! पोदी हैमी संतान विहीन थी! उन्होंने प्रेमवती को, जब वह 15 दिन की थी, गोद लिया था! उनको लड़की के पिता का कोई पता नहीं था, माँ नहीं चाहती थी कि यह जीवित रहे! अब प्रेमवती की आयु बारह वर्ष है! वह पढाई में बहुत पीछे है! यद्यपि उसकी आयु 12 वर्ष है, वह तीसरी कक्षा में ही है! अपनी सहपाठियों जैसा उसका स्वास्थ्य भी नहीं है और वह अभी यौवना भी नहीं हुई! प्रेमवती का स्कूल या पड़ोस में कोई दोस्त नहीं है! वह दूसरी लड़कियों से अलग रहती है! पोदी हैमी के अनुसार दुसरे बच्चे ख़राब होने के कारण इस घर आने नहीं दिए जाते, ताकि उनकी बच्ची ख़राब न हो जाए! प्रेमवती को यह कभी नहीं बताया गया था कि वह गोद ली हुई है! उसका उन्होंने अपनी गुडिया की तरह ही पालन पोषण किया था! लगभग आठ महीने पहले वह स्कूल से रोटी हुई घर लौट आई थी! उसने बताया कि उसके सहपाठी उसे यह कहकर चिढ़ाते हैं कि वह एक गोद ली हुई बच्ची है! लेकिन अरुण सिंघो और पोदी हैमी ने उसे यह कहकर शांत किया था कि वह लड़कियां झूठ बोलती हैं! चूंकि स्कूल की लड़कियां उसे चिढाती रहीं, उसने स्कूल से ही घृणा करना आरम्भ कर दिया और अंत में स्कूल जाने से ही मना कर दिया!
सुलझ गयी गुत्थी
जब मैंने प्रेमवती से पूछताछ की तो मैंने बिलकुल अलग ही अंदाज धारण कर लिया! मैंने बहुत ही नम्रता और प्यार से चेहरे पर मुस्कराहट लाकर उससे बात की! मैंने उसे अपने नाक पर देखने के लिए कहा! इस समय पर मैं, मेरी पत्नी और गुणाशेखर के बिना सभी को कमरे से बाहर जाने का संकेत किया! लगभग तीस मिनटों के बाद प्रेमवती को कमरे से बाहर भेज दिया गया और उसके माँ बाप को फिर से भीतर बुला लिया गया! दस मिनटों के बाद हम सभी कमरे से बाहर आ गए!
मैंने आँगन से बाहर आकर एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया! मैंने कहा, “आज से इस घर में कोई कष्ट नहीं होगा! अरुण सिंघो नें लाख रुपये से भी ज्यादा भूत प्रेत निकलने वालों पर खर्च कर दिए थे, उस भूत को भागने के लिए जो कहीं था ही नहीं! जो गतिविधियाँ घर पर हुईं, वह दिमागी तौर पर बीमार घर के एक सदस्य के द्वारा हुईं! उस व्यक्ति ने भविष्य में ऐसा न करने का मुझे वचन दिया है! यदि दुबारा तकलीफ शुरू हो जाए तो उस व्यक्ति का ईलाज, उस व्यक्ति को किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ से ठीक करवाना है, चौकियां लगवाना नहीं! मनुष्य ने अपने आदिकालीन समय में सोंचता था कि उसकी सभी शारीरिक और मानसिक बीमारियों का कारण दुष्ट आत्माएं हैं, और उसका इलाज जादू–टोना है! आज केवल वही व्यक्ति जिनके दिमाग आदिकालीन समय तक ही विकसित हुए हैं, ऐसी बीमारियों के लिए जादू–टोने करेंगे!” लोगों की भीड़ से गहरे सम्मान से हम वापस लौट पड़े! श्रीमान गुणाशेखर की ओर से की गयी विशेष प्रार्थना पर हम उसकी माईगोडा महाविद्यालय स्थित कोठी में कुछ मिनटों के लिए ठहर गए! गुणाशेखर की पत्नी की ओर से तैयार की गयी चाय पीते समय मैंने टुकड़ी के दुसरे सदस्यों को बताया कि प्रेमवती पागल या भूत कैसे बन गयी थी!
विश्लेषण : प्रेमवती भूत कैसे बन गयी?
“यह जान लेना कि, जिस माँ बाप को वह इतना प्यार करती थी, उसके नहीं थे, प्रेमवती की आयु की लड़की के लिए एक बहुत बड़ी दिमागी चोट थी! किशोरावस्था से पहले एक लड़की के लिए अपने प्यारे व्यक्ति की कमी का मानसिक दुःख, एक नवयुवती के अपने कामुक प्रेमी की कमी के दुःख जितना गहरा होता है! इस मानसिक दुःख की खराबी ने उसे पागल बना दिया था! प्रेमवती अपने स्कूल की दूसरी लड़कियों की तरह लगने के लिए, अपनी अचेत इच्छा पूर्ती के लिए स्वयं ही अपने केश काटा करती थी! यद्यपि उसकी शारीरिक आयु बारह वर्ष थी, लेकिन दिमागी तौर पर वह छह–सात वर्ष की ही थी! सात वर्ष की दूसरी लड़कियों की तरह वह भी गुड़ियों से खेलना चाहती थी, लेकिन उसे ऐसा करने नहीं दिया जाता था! इसलिए वह अपनी माँ की साड़ियाँ फाड़ती थी और उनसे गुड्डियाँ बनाती थी! पढाई में उसका पिछड़ापन उसकी कमजोर बुद्धि के कारण था! उसकी माँ की तरफ से, जब वह गर्भ में ही थी, गर्भपात करवाने की कोशिश से मैं समझता हूँ कि उसकी जिंदगी के पहले पंद्रह दिन उसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया था! और उसको एक अनिच्छित बच्चे की तरह धुतकारा गया था! उसका पिछड़ा हुआ शारीरिक व मानसिक विकास और उसकी बच्चों जैसी बीमारियों का कारण, उसकी जिंदगी के आरंभिक कुछ कुछ दिनों में अच्छे पौष्टिक भोजन की कमी हो सकते हैं! अब वह किस हद तक साधारण जैसी हो सकती है, यह अरुण सिंघे व उसकी पत्नी की होशियारी व समझदारी पर निर्भर करता है!
क्या वे अस्वाभाविक घटनाएँ वास्तव में हुई थीं?
मुझे यह विश्वास है कि आप बहुत सी भय और घबराहट से माता-पिता की तरफ से न मानने योग्य कल्पित कहानियों को सुनते होंगे! जो कुछ उन्होंने बताया मैंने उसको ज्यादा महत्व नहीं दिया! मैं जहाँ कहीं भी जांच पड़ताल के लिए जाता हूँ, मुझे ऐसी न मानने योग्य कल्पित कहानियां प्रायः सुननी पड़ती हैं! घर के सदस्य जो यह विश्वास कर लेते हैं कि उनके घर भूत रहता है, प्रायः भय की भावना के अधीन रहते हैं और वे स्वयं धोखे का शिकार हो जाते हैं! ऐसी स्थिति में वे सभी अविश्वसनीय गतिविधियों को जिनको, करने वाला जिम्मेदारी नहीं लेता, प्रायः किसी भूत की क्रिया मान लेते हैं! और ऐसा भूत-प्रेत वास्तव में कहीं होता ही नहीं! वे बहुत ही घबराए हुए, उत्तेजित हो जाते हैं, इसलिए उनकी साक्षी को कोई महत्व नहीं दिया जाता! आज मेरी व्यक्तिगत जांच पड़ताल के दौरान, न तो अरुण सिंघे ने और न ही पोदी हैमी ने किसी ऐसी अस्वाभाविक घटना के बारे में बताया, जैसे की वस्तुओं का हवा में उड़ना, कटे हुए हाथ, अद्रश्य मुंह, प्रेमवती का पीछा करता हुआ भूत आदि!