हमारे चिंतन की यात्रा प्रारंभ हुई थी सत्य की खोज से। तब हम आस्तिक हुआ करते थे। समय गुजरा और हमें पता चला कि सत्य की खोज करने के लिए पात्रता की जरुरत होती है और ये पात्रता निम्न चार सत्य को जानकार प्राप्त की जा सकती है-
- संसार में भ्रम ही भ्रम है।
- सभी संसार वासी इसी भ्रम के साथ जीते हैं और स्वयं के साथ आने वाली पीढ़ियों को भी भ्रमित करते जाते हैं।
- वे सभी इस भ्रम से बाहर नहीं आना चाहते और न ही भ्रम मिटाने की कोई कोशिश ही करते हैं।
- कुछ विरले जो इस भ्रम को समझ जाते हैं, उन्हें सत्य की अनुभूति होने लगती है, और यही सत्य की खोज करने की पात्रता प्राप्त कर लेते हैं।
लगता है कि हमने पात्रता तो प्राप्त कर ली है, अब बस सत्य की खोज में जीवन बीत रहा है।
मेरे बारे में ज़्यादा कुछ मेरी डायरी के पन्ने… में मिल सकता है। बाक़ी बात हो ही रही है तो बता दें कि हम भारतीय विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान पुणे (IISER Pune) में BS-MS 5th Year के छात्र हैं। मुख्य विषय मूलभूत सैद्धांतिक भौतिकी है।
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