कहानी एक भूत की

अरुण सिंघो का घर एक पागल खाना था! पिछले आठ महीनों से एक दुष्ट आत्मा नें अरुण सिंघो, उसकी पत्नी पोदी हैमी और इकलौती पुत्री प्रेमावती का जीना मुश्किल कर दिया था! पांच बार चौकियां लगाने के बाद भी यह आत्मा उनके घर से नहीं निकली थी! रेत व पत्थर प्रत्येक स्थान पर फेंक दिए जाते थे! तेल के दीपकों से जब कोई आसपास भी नहीं होता था तो उससे लपटें निकल आती थीं! अदृश्य हाथों नें पुत्री के केश काट लिए थे! आत्मा के लिखे गए पत्र पता नहीं कहाँ से आ जाते थे! वस्तुएं हवा में उड़ती हुई नजर आती थीं! अलमारियों में बंद कपड़े कैंची से काट दिए जाते थे! रहस्यपूर्ण व अद्भुत सी लिपियाँ दीवारों पर लिखी जाती थीं! उबलते हुए चावलों में कोई रेत डाल जाता था!

जांच के लिए प्रस्थान

अरुण सिंघो के घर से भूत शांत करने के लिए मेरी सहायता लेने के लिए कोसगामा निवासी डी. वाई. राणा सिंघे की तरफ से की गयी अपील के जवाब में 25 नवम्बर, 1963 दिन सोमवार को मेरे व मेरी पत्नी के साथ संवाददाताओं की एक टोली ने कोलम्बो को प्रस्थान किया! रास्ते में हम माईगोडा महाविद्यालय के पास अरुण सिंघो के घर पनालूवा का रास्ता पूछने के लिए ठहरे! स्कूल के प्रिंसिपल श्रीमान पी. बीरा सिंघे भूत वाले घर तक हमें कार में ले जाने के लिए तैयार हो गए! हम माइगोडा जंक्शन से ऊंची सड़क से नीचे आये और एक चाय की दूकान के सामने पनालूवा सड़क के तीसरे मील पत्थर के पास ठहर गए! जो ग्रामीण लोग वहां इकठ्ठा हो गए थे, उन्होंने हमें बताया कि अरुण सिंघो के घर पहुँचने के लिए हमें चावल व रबड़ के खेतों में से आधा मील पैदल चलना पड़ेगा!

जिस दिन से अरुण सिंघो के घर में पागल कर देनी वाली इन गतिविधियों की चर्चा पड़ोसी गावों में पहुंची थी, इस चाय दूध वाले की दुकान का काम काफी बढ़ गया था! सारा दिन वहां से पुरुष, स्त्रियाँ व बच्चे भूत वाले घर जाकर अपनी उत्सुकता को संतुष्ट करने के लिए गुजरते थे! इस चाय दूध वाली दुकान पर वे आराम कर लेते! जब हम पनालूवा वाली सड़क पर कार से गुजर रहे थे तब गाँव वाले लोगों ने मुझे पहचान लिया था, क्योंकि उन्होंने समाचार पत्रों में मेरे फोटो देख रक्खे थे! हम आगे जाने के लिए तैयार ही थे तो एक काफी बड़ी भीड़ हमारे इर्द गिर्द आ जुड़ी थी! हमारी टोली भीड़ के साथ एक लाइन में बढती जा रही थी! जब हम बढ़ते जा रहे थे तो मेरी पत्नी की अचानक चीख ने भीड़ को चौंका दिया! दो ग्रामीण स्त्रियों ने मेरी पत्नी के पैरों में चिपकी जोंक को निकालने में मदद की! वे हँस रही थीं! हम अरुण सिंघो के घर दोपहर के साढ़े तीन बजे पहुँचे!

भूत वाले घर का दृश्य

अरुण सिंघो का छोटा सा व नया घर रबर के वृक्षों के प्लाट के बीच स्थित था! घर के अन्दर जाने से पहले जो चीजें हमने देखि थी सामने वाली दीवार पर बड़े बड़े अक्षरों में सिंहली भाषा में लिखा हुआ था, “इस घर में भूत रहता है!” अरुण सिंघो नें हमें बताया, “इसे भूत ने दो महीने पहले लिखा था, घर के भीतर की दीवारों पर ऐसी और भी पंक्तियाँ हैं!” वह हमें भीतर ले गया! हम बड़े कमरे में चले गए! कोयले से कमरे की चारो दीवारें लिखितों से भरी पड़ी थीं! यद्यपि बहुत से गलतियों के साथ लिखितें सिंहली भाषण में ही थीं, लेकिन कहीं कहीं लिखतें अंग्रेजी के शब्द भी अंकित थे! अंग्रेजी के कई शब्द उलटे लिखे हुए थे जिससे ज्ञात होता था कि भूत इस विदेशी  भाषा में निपुण नहीं था! लेकिन वह केवल नक़ल करने की कोशिश कर रहा था! कई जगह लिखितें सिंहली भाषा में एक दुसरे के ऊपर लिखी थीं जिससे पढ़ी नहीं जा सकती थीं!

क्या कुछ घटित हुआ था?

जब से रहस्यपूर्ण गतिविधियाँ शुरू हुईं थी, तब से लेकर घर में क्या कुछ घटित हुआ था, इसके बारे में मुझे अरुण सिंघो व उनकी पत्नी पोदी हैमी ने इकट्ठे बताना शुरू किया! “यह सब आठ महीने पहले घटित हुआ”, अरुण सिंघो ने कहा! सबसे पहले कमरे की छत से रेत गिरी! कुछ दिनों बाद पत्थर गिरने शुरू हो गए! कई पत्थरों का आकर आधी ईंट के बराबर था! इसके बाद कप, प्लेट व प्यालियाँ हवा में उडनी शुरू हुईं! यद्यपि वे अलमारी में ताला लगाकर रखी होती थीं फिर भी वे बहार फेंक दी जाती थीं! भूत ने पंद्रह कप व प्यालियाँ तोड़ दी हैं! उसनें मिटटी के कई बर्तन जमीन पर फेंककर तोड़ डाले हैं! हमने रसोई से कई बर्तन बाहर फेंके जाते हुए देखे हैं, उस समय भी जब रसोई में कोई नहीं होता था! भूत वहीँ जाता है जहाँ हमारी बेटी प्रेमवती जाती है! कई बार तेल वाले दीपकों की लपटें अद्रश्य मुहों से बुझाई जाती हैं, जबकि सभी दरवाजे और खिड़कियाँ बंद होती हैं, ताकि ऐसा हवा में ही न होता होगा! हम देश के कोने कोने में प्रसिद्ध कई भूत प्रेत निकलने वाले ला चुके हैं! यद्यपि भिन्न भिन्न टोलियों की तरफ से पांच बार चौकी लगायी गयी थी, लेकिन कष्ट उसी तरह से है! पांचवी चौकी लगाये अभी तीन दिन ही हुए हैं!

भूत ने पांच बार प्रेमवती के केश काटे हैं! उस अवसर पर पोदी हैमी नें एक संदूक खोला और कागज का एक डिब्बा लेकर आई, जिसमें केशों का एक लम्बा गुच्छा था जिसने कभी प्रेमवती के सिर को श्रृंगारा था! यह काफी लम्बा व भरी था जिससे एक पूरे आकर का जूडा बनाया जा सकता था! “भूत नें केश काटने के लिए रसोई का चाकू प्रयुक्त किया था! उसको केश काटने का उस समय पता चला जब भूत के हाथों से यह चाक़ू केशों के लच्छे के साथ फर्श पर गिरा! जब यह घटित हुआ, तो वह बहुत जोर से रोई! जब हम उसकी सहायता के लिए भागे तो हमने भी फर्श पर चाक़ू व केशों के गुच्छ दोनों गिरे हुए देखे!” पोदी हैमी बताती गयी, “मेरी कई साड़ियाँ और प्रेमवती की कई फिराकें जो कि अलमारी में ताला लगा कर बंद की हुई थीं, भूत ने फाड़ दी हैं!  भूत मेरी साड़ियों से टुकड़े फाड़कर गुडिया बना लेता है! कई टुकड़े जाकेटों के नमूने तैयार करने में प्रयुक्त किये जात्ते हैं!

एक दिन लाल मिर्च, नमक और नारियल का चूरा फर्श पर बिखरा हुआ देखा गया था! कई बार हमें भूखे ही सो जाना पड़ता था क्योंकि उबलते हुए चावलों के बर्तन में रेट डाल दी जाती थी! एक बार काटे हुए हाथों ने (केवल पंजे ही) प्रेमवती से चावलों की प्लेट खींच ली थी! जो कपड़े अलमारी से गुम हुए थे, बाद में वे छत से मिल गए थे! भूत यह संकेत देता हुआ पत्र फेंक देता था कि गुडिया कैसे संभाली जाएँ! जब जब प्रेमवती को उसके मामा राणा सिंघे के घर भेजा गया तो भूत भी उसके साथ ही गया! जब वह वहां थी तो भूत नें राणा सिंघे के मेज पर धमकी पूर्ण पत्र फेंका, कि यदि प्रेमवती को वापिस नहीं भेजा तो वह राणा टाइम पीस तोड़ देगा! भूत ने राणा सिंघे के बच्चे की दूध वाली शीशी फोड़ डाली थी!  रबर के जम रहे दूध में रबर के वृक्षों के बीज फेंक दिए जाते थे! जब घर के भीतर या बहार लोग जमा हो जाते थे तो भूत उनको पत्थर मारता था! कई बार जाने पहचाने लोगों के बारे में टिप्पणियां लिखी जाती थीं! और कागज की वे चिटें उनके पास फेंक दी जाती थीं! 

जाँच – पड़ताल का कार्यक्रम

घर के भीतर दाखिल हो रही भीड़ को काबू करना कठिन काम था! वे सभी उस भूत को देखने के लिए उत्सुक थे जिसको मुझे पकड़ना था! उनमें से कई यह सोंचते होंगे कि मैं घर में से भूत को गले से पकड़कर बहार आऊंगा! जितने समय तक भीड़ बहार न चली जाती, मेरे लिए जांच पड़ताल करना संभव नहीं था! समूह के सभी सदस्य हैरान हो गए, जब मेरे बहार आकर हुक्म देने से ही साड़ी भीड़ बाहर  चली गयी! वे सेना की टुकड़ी की तरह आगे बढ़ते जा रहे थे, जैसे उनके कप्तान ने हुक्म दिया हो! ‘वाली’ अपना कैमरा चलाने में काफ़ी क्रियाशील था और लाइटे सभी तरफ घुमा रहा था! मैंने भीतर वाले कमरे में अपनी जांच शुरू की! मैंने उस कमरे में अपने साथ केवल तीन और आदमी रुकने की आज्ञा दी; मेरी पत्नी, तिलकरत्ने और द्विभाषिए का कार्य करने के लिए काइगोडा महाविद्यालय का प्रिंसिपल!

घर के तीन मेंबर अकेले अकेले मेरी तरफ से जांच के लिए बुलाये गए! जब एक से पूछताछ की जाती तो बाकी के दोनों मेंबर बहार के कमरे में ही बैठे रहते! मैंने इस बात पर दबाव डाला कि वे सिर्फ वही बात कहें, जो उन्होंने अपनी आँखों से खुद देखी हों! उस चीज के बारे में बात न करें, जो उन्होंने किसी से सुनी हों! मैंने अरुण सिंघो से बात शुरू करके प्रेमवती  पर पहुँच कर जांच ख़तम कर दी! जांच के दौरान नीचे लिखे तथ्य सामने आये!

जांच के दौरान सामने आये तथ्य

अरुण सिंघो की आयु 62 वर्ष और पोदी हैमी की 54 वर्ष है! उनकी शादी 1948 में हुई! पोदी हैमी संतान विहीन थी! उन्होंने प्रेमवती को, जब वह 15 दिन की थी, गोद लिया था! उनको लड़की के पिता का कोई पता नहीं था, माँ नहीं चाहती थी कि यह जीवित रहे! अब प्रेमवती की आयु बारह वर्ष है! वह पढाई में बहुत पीछे है! यद्यपि उसकी आयु 12 वर्ष है, वह तीसरी कक्षा में ही है! अपनी सहपाठियों जैसा उसका स्वास्थ्य भी नहीं है और वह अभी यौवना भी नहीं हुई! प्रेमवती का स्कूल या पड़ोस में कोई दोस्त नहीं है! वह दूसरी लड़कियों से अलग रहती है! पोदी हैमी के अनुसार दुसरे बच्चे ख़राब होने के कारण इस घर आने नहीं दिए जाते, ताकि उनकी बच्ची ख़राब न हो जाए! प्रेमवती को यह कभी नहीं बताया गया था कि वह गोद ली हुई है! उसका उन्होंने अपनी गुडिया की तरह ही पालन पोषण किया था! लगभग आठ महीने पहले वह स्कूल से रोटी हुई घर लौट आई थी! उसने बताया कि उसके सहपाठी उसे यह कहकर चिढ़ाते हैं कि वह एक गोद ली हुई बच्ची है! लेकिन अरुण सिंघो और पोदी हैमी ने उसे यह कहकर शांत किया था कि वह लड़कियां झूठ बोलती हैं! चूंकि स्कूल की लड़कियां उसे चिढाती रहीं, उसने स्कूल से ही घृणा करना आरम्भ कर दिया और अंत में स्कूल जाने से ही मना कर दिया!

सुलझ गयी गुत्थी

जब मैंने प्रेमवती से पूछताछ की तो मैंने बिलकुल अलग ही अंदाज धारण कर लिया! मैंने बहुत ही नम्रता और प्यार से चेहरे पर मुस्कराहट लाकर उससे बात की! मैंने उसे अपने नाक पर देखने के लिए कहा! इस समय पर मैं, मेरी पत्नी और गुणाशेखर के बिना सभी को कमरे से बाहर जाने का संकेत किया! लगभग तीस मिनटों के बाद प्रेमवती को कमरे से बाहर भेज दिया गया और उसके माँ बाप को फिर से भीतर बुला लिया गया! दस मिनटों के बाद हम सभी कमरे से बाहर आ गए!

मैंने आँगन से बाहर आकर एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया! मैंने कहा, “आज से इस घर में कोई कष्ट नहीं होगा! अरुण सिंघो नें लाख रुपये से भी ज्यादा भूत प्रेत निकलने वालों पर खर्च कर दिए थे, उस भूत को भागने के लिए जो कहीं था ही नहीं! जो गतिविधियाँ घर पर हुईं, वह दिमागी तौर पर बीमार घर के एक सदस्य के द्वारा हुईं! उस व्यक्ति ने भविष्य में ऐसा न करने का मुझे वचन दिया है! यदि दुबारा तकलीफ शुरू हो जाए तो उस व्यक्ति का ईलाज, उस व्यक्ति को किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ से ठीक करवाना है, चौकियां लगवाना नहीं! मनुष्य ने अपने आदिकालीन समय में सोंचता था कि उसकी सभी शारीरिक और मानसिक बीमारियों का कारण दुष्ट आत्माएं हैं, और उसका इलाज जादूटोना है! आज केवल वही व्यक्ति जिनके दिमाग आदिकालीन समय तक ही विकसित हुए हैं, ऐसी बीमारियों के लिए जादूटोने करेंगे!” लोगों की भीड़ से गहरे सम्मान से हम वापस लौट पड़े! श्रीमान गुणाशेखर की ओर से की गयी विशेष प्रार्थना पर हम उसकी माईगोडा महाविद्यालय स्थित कोठी में कुछ मिनटों के लिए ठहर गए! गुणाशेखर की पत्नी की ओर से तैयार की गयी चाय पीते समय मैंने टुकड़ी के दुसरे सदस्यों को बताया कि प्रेमवती पागल या भूत कैसे बन गयी थी!

विश्लेषण : प्रेमवती भूत कैसे बन गयी?

“यह जान लेना कि, जिस माँ बाप को वह इतना प्यार करती थी, उसके नहीं थे, प्रेमवती की आयु की लड़की के लिए एक बहुत बड़ी दिमागी चोट थी! किशोरावस्था से पहले एक लड़की के लिए अपने प्यारे व्यक्ति की कमी का मानसिक दुःख, एक नवयुवती के अपने कामुक प्रेमी की कमी के दुःख जितना गहरा होता है! इस मानसिक दुःख की खराबी ने उसे पागल बना दिया था! प्रेमवती अपने स्कूल की दूसरी लड़कियों की तरह लगने के लिए, अपनी अचेत इच्छा पूर्ती के लिए स्वयं ही अपने केश काटा करती थी! यद्यपि उसकी शारीरिक आयु बारह वर्ष थी, लेकिन दिमागी तौर पर वह छहसात वर्ष की ही थी! सात वर्ष की दूसरी लड़कियों की तरह वह भी गुड़ियों से खेलना चाहती थी, लेकिन उसे ऐसा करने नहीं दिया जाता था! इसलिए वह अपनी माँ की साड़ियाँ फाड़ती थी और उनसे गुड्डियाँ बनाती थी! पढाई में उसका पिछड़ापन उसकी कमजोर बुद्धि के कारण था! उसकी माँ की तरफ से, जब वह गर्भ में ही थी, गर्भपात करवाने की कोशिश से मैं समझता हूँ कि उसकी जिंदगी के पहले पंद्रह दिन उसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया था! और उसको एक अनिच्छित बच्चे की तरह धुतकारा गया था! उसका पिछड़ा हुआ शारीरिक व मानसिक विकास और उसकी बच्चों जैसी बीमारियों का कारण, उसकी जिंदगी के आरंभिक कुछ कुछ दिनों में अच्छे पौष्टिक भोजन की कमी हो सकते हैं! अब वह किस हद तक साधारण जैसी हो सकती है, यह अरुण सिंघे व उसकी पत्नी की होशियारी व समझदारी पर निर्भर करता है!

क्या वे अस्वाभाविक घटनाएँ वास्तव में हुई थीं?

मुझे यह विश्वास है कि आप बहुत सी भय और घबराहट से माता-पिता की तरफ से न मानने योग्य कल्पित कहानियों को सुनते होंगे! जो कुछ उन्होंने बताया मैंने उसको ज्यादा महत्व नहीं दिया! मैं जहाँ कहीं भी जांच पड़ताल के लिए जाता हूँ, मुझे ऐसी न मानने योग्य कल्पित कहानियां प्रायः सुननी पड़ती हैं! घर के सदस्य जो यह विश्वास कर लेते हैं कि उनके घर भूत रहता है, प्रायः भय की भावना के अधीन रहते हैं और वे स्वयं धोखे का शिकार हो जाते हैं! ऐसी स्थिति में वे सभी अविश्वसनीय गतिविधियों को जिनको, करने वाला जिम्मेदारी नहीं लेता, प्रायः किसी भूत की क्रिया मान लेते हैं! और ऐसा भूत-प्रेत वास्तव में कहीं होता ही नहीं! वे बहुत ही घबराए हुए, उत्तेजित हो जाते हैं, इसलिए उनकी साक्षी को कोई महत्व नहीं दिया जाता! आज मेरी व्यक्तिगत जांच पड़ताल के दौरान, न तो अरुण सिंघे ने और न ही पोदी हैमी ने किसी ऐसी अस्वाभाविक घटना के बारे में बताया, जैसे की वस्तुओं का हवा में उड़ना, कटे हुए हाथ, अद्रश्य मुंह, प्रेमवती का पीछा करता हुआ भूत आदि!

(यह डॉ अब्राहम कोवूर की पुस्तक  Begone Godmen में दी गयी एक घटना का हिंदी रूपांतरण है!)
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भ्रमात्मक अनुभव

किसी व्यक्ति का विश्वास उसके अपने प्रयोगों के आधार पर निर्मित होता है! क्या किसी व्यक्ति के ग्रहण किये अनुभव मात्र इसलिए छोड़ देना उचित है कि वह अनुभव आप प्राप्त नहीं कर सके? रात्रि में जब मैं आकाश में देखता हूँ, तो मुझे एक भी तारा नहीं दिखाई देता, क्योंकि मैं अंधा हूँ! मुझसे आगे वाली सीट पर बैठा व्यक्ति यदि आकाश में लाखों तारे देख लेता है, तो क्या यह उचित होगा की मैं मैं उसपर यह आरोप लगाऊं कि वह झूठ बोल रहा है? यदि कोई व्यक्ति दूरबीन से और भी अधिक दूर देख ले और मुझे उनके बारे में बताये तो क्या यह उचित होगा की मैं उसे एक कल्पना कह दूं? साधारण व्यक्ति में जोइलूइस या सैंडो की तरह शक्ति नहीं होती! इन शक्तिशाली व्यक्तियों में रामानुजन या आइन्स्टीन की तरह बुद्धि नहीं होती! यदि ऐसा है तो  क्या यह संभव नहीं है, कि कुछ व्यक्तियों में दूसरों की अपेक्षा अलौकिक एवं आध्यात्मिक अनुभव ज्यादा हों? मेरा यही विश्वास मुझे शांति और प्रसन्नता प्रदान करता है! इसी तरह यदि दूसरे भी अपनी शांति व प्रसन्नता किसी और विश्वास में से प्राप्त करते हों तो मैं उनको ठेस पहुँचाने का प्रयत्न क्यों करूँ?

श्री के.पी. केशवा मैनन जो कि भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और बाद में श्रीलंका के भारतीय राजदूत भी थे, ने अपने 83वें जन्मदिवस के अवसर पर एक भारतीय पत्रिका के लिए लेख लिखा था, यह उसी का एक छोटा सा भाग है! श्री मैनन एक लेखक और पत्रकार भी थे! अपने बुढ़ापे में श्री मैनन जो भी लिखते थे, लाखों भारतीयों द्वारा उसे बड़ी उत्सुकता से पढ़ा जाता था, उनके शब्दों को बड़ा विद्वतापूर्ण समझा जाता था! श्री मैनन नें ऊपर जो कुछ भी लिखा है, बहुत से बुद्धिमान और विचारशील व्यक्तियों को यह एक मान्य दलील लगेगी! इसीलिए आइये अब हम मनोवैज्ञानिक ढंग से मनुष्य के विश्वास व मानसिक अनुभवों की जांच करें!

मनुष्य में अनुभव दो प्रकार के होते हैं, वास्तविक अनुभव और भ्रमात्मक अनुभव!

बहिर्मुखी अनुभव सत्य व वास्तविक होते हैं! तर्क व प्रयोगों द्वारा इनकी पड़ताल करके इनकी वास्तविकता का पता लगाया जा सकता है! जैसे दूरबीन या नंगी आखों से तारे देखना, इलेक्ट्रान का होना! अंतर्मुखी अनुभव सत्य तो हो सकते हैं, मगर आवश्यक नहीं कि वह वास्तविक भी हों! कई परिस्थितियों में तर्क व प्रयोगों द्वारा इनकी पड़ताल भी नहीं की जा सकती(यहाँ सत्य का अर्थ है कि कहने वाला अपनी पूरी जानकारी और समझ से सत्य बोल रहा है जबकि वास्तविक का अर्थ है उसके द्वारा बताई जा रही घटना वास्तव में घटित हुई है!)

उदाहरणतः एक छोटे बच्चे को नींद में बिस्तर पर मूत्र करने की बीमारी है! उसकी नासमझ माँ इस बात के लिए उसे रोज दण्डित करती हैं! इस घटना की वास्तविकता क्या है? यही कि जब लड़के का मूत्राशय भर जाता है तो उसके मस्तिष्क में इसकी सूचना पहुँचती है! यह सूचना बच्चे में एक सपना उत्पन्न करती है! बच्चा सपने में बिस्तर से उठकर मूत्रालय जाता है और वहां मूत्र त्यागता है! मगर असल में वह बिस्तर पर ही मूत्र त्याग देता है! यदि प्रातःकाल उठकर बच्चे के जागने से पूर्व ही उसका गीला बिस्तर बदलकर उसे सूखे बिस्तर पर सुला दिया जाये, तो जागने पर वह अपने बिस्तर को सूखा देखकर प्रसन्न हो जायेगा और अपनी माँ से उत्सुकतापूर्वक जाकर कहेगा, “माँ, आज रात में मैंने बिस्तर पर मूत्र नहीं किया, बाहर जाकर मूत्रालय में किया था!” बच्चा बिलकुल सत्य बोल रहा है, मगर यह वास्तविकता नहीं है! यह सत्य इसलिए है क्योंकि यह बच्चे का कल्पित अनुभव है! मगर जांच करने पर यह पता चल जायेगा कि उसने बिस्तर पर ही मूत्र त्यागा था!

भ्रमात्मक अनुभव तीन प्रकार के होते हैं—

. ज्ञानेन्द्रियों से उत्पन्न भ्रम,. मानसिक भ्रम,. झूठे विश्वासों से उत्पन्न भ्रम

  1. ज्ञानेन्द्रियों से उत्पन्न भ्रम : पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होने के कारण यह भी पांच प्रकार के होते हैं– दिखाई देने वाले भ्रम, स्वाद वाले भ्रम, सुनने वाले भ्रम, स्पर्श वाले भ्रम व सूंघने वाले भ्रम! गर्मी के दिनों में सड़क पर पानी का दिखाई देना, रेगिस्तान की मरीचिका आदि द्रष्टि भ्रम हैं! आपने ध्यान दिया होगा, पक्की सड़क पर जाते हुए गर्मी के दिनों में दूर से पानी दिखाई देता है, मगर जैसे ही उसके पास जाओ वहां कोई पानी नहीं होता, अब पानी और दूर दिखाई देने लगता है! यह मात्र एक द्रष्टि भ्रम होता है, जिसके कारण को भौतिक विज्ञान के माध्यम से समझा जा सकता है! इसीप्रकार करौंदे के पत्ते को खाने के बाद पानी पीने से पानी मीठा लगता है, मीठा बिस्कुट खाने के बाद चाय मीठी नहीं लगती जबकि न तो पानी मीठा होता है न ही चाय फ़ीकी होती है, यह स्वाद भ्रम है!

बहुत से लोग जिन्हें भूतप्रेत, देवीदेवता या परियों आदि में विश्वास होता है, उनको अँधेरे में यह सब मात्र द्रष्टि भ्रम के कारण ही दिखाई पड़ते हैं! उस डर के कारण, जो इन लोगों के मन में बचपन में ही बैठा दिया जाता है, ये लोग पास जाकर उसकी जांच करने का साहस ही नहीं करते!

  1. मानसिक भ्रम : मानसिक भ्रम चार प्रकार के कारणों से उत्पन्न हो सकते हैं भौतिक, रासायनिक, जीव वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक!

भौतिक : आज विज्ञान के द्वारा मनुष्य में कृत्रिम भावनाएं उत्पन्न की जा सकती हैं! मतलब डर, भूख, नींद, प्रेम, उत्सुकता, ख़ुशी, दोस्ती या नफ़रत मात्र मस्तिष्क के किसी भाग को तरंगों के द्वारा उत्तेजित करके उत्पन्न किया जा सकता है! यही प्रक्रिया ढोलक की आवाज, तालियों की आवाज, संगीत और नृत्य, मंदिरों में पूजा, विभिन्न सभाओं इत्यादि के द्वारा भी संपन्न की जा सकती है! यह सभी क्रियाएं मस्तिष्क के तंत्र को उत्तेजित करती हैं, जिससे उसमें मानसिक भ्रम उत्पन्न होनें लगता हैं और वह व्यक्ति आवेशित हो जाता है!

रासायनिक : चरस, अफीम, धतूरा, गांजा, हेरोइन, L.S.D. जैसे पदार्थ मस्तिष्क को उत्तेजित करते हैं और व्यक्ति को मानसिक भ्रम उत्पन्न हो जाता है!  L.S.D. के खोजकर्ता अल्बर्ट हाफमैन (Albert Hofmann) ने L.S.D. की थोड़ी सी मात्रा लेने के उपरांत उसके शक्तिशाली प्रभाव के बारे में कुछ इस तरह बताया,…मामूली चक्कर और बेचैनी थी! मैं लेट गया और अत्यंत उत्तेजित काल्पनिक अवस्था में डूब गया! सपने जैसी स्थिति में बंद आँखों से मैं दिन के प्रकाश को स्पष्ट देख रहा था! मैं असाधारण आकार की तीव्र चमक और जल्दी जल्दी बदलते हुए रंगों वाली शानदार तस्वीर को लगातार  देख रहा था! लगभग दो घंटे बाद स्थिति सामान्य हो गयी! इन जैसे पदार्थो की बहुत ही सूक्ष्म मात्रा (एक मिलीग्राम का करोडवां हिस्सा) भी मानसिक उन्माद उत्पन्न करने के लिए काफी होता है! ऐसे रासायनिक पदार्थ मानसिक विकार वाले लोगों के खून में पाए जाते हैं! कभी कभी कुछ पुजारी नशीले पदार्थों को प्रसाद में मिला देते हैं, जिसे दर्शनार्थियों में धार्मिक उन्माद उत्पन्न हो जाता है! इसका एक उदाहरण मद्रास के मुथुमुदाली मोहल्ले में बालाजी का एक मंदिर है! 7 मई, 1963 को यहाँ के मुख्य पुजारी को 256 किलोग्राम गांजा रखने के अपराध में गिरफ्तार किया गया था! मुकदमें के दौरान पता चला कि यह पुजारी प्रसाद में गांजा मिलाया करता था, जिससे लोगों में धार्मिक उन्माद उत्पन्न किया जा सके!

जीव वैज्ञानिक : बेरीबेरी रोग विटामिन बी की कमी से होता है! पागलों जैसा आचरण इसका महत्वपूर्ण चिन्ह है! विटामिन की ही कमी के कारण उत्पन्न रोग पिलरागा मानसिक विकार का कारण बन सकता है! ऐसे व्यक्तियों को विटामिन की पूरी मात्र देकर पूर्व स्थिति में लाया जा सकता है! विटामिन की ही तरह शरीर में कुछ उत्पन्न होने वाले उत्तेजक रसों के असंतुलन से भी मानसिक विकार जन्म ले लेते हैं! वे व्यक्ति जिनमे पैराथायराइड ग्रंथि द्वारा पैदा किये गए रस की कमी होती है, भी गंभीर मानसिक भ्रम के शिकार हो जाते हैं! डॉ कोवूर एक बताते हैं, “मेरी एक भतीजी जब भी आकाश की तरफ देखती तो  उसे मेरी मृत माँ की आत्मा दिखाई देती! मैं उसे केरल के अपने पैतृक घर से श्रीलंका ले आया! पूरी तरह जांच करने पर पता चला कि उसकी पैराथाईराइड ग्रंथि में खराबी थी! इस खराबी को दूर करने के लिए उसे कैल्शियम दिया गया और इसके साथ ही उसे आकाश में मेरी माँ की आत्मा दिखाई देनी बंद हो गयी!

मनोवैज्ञानिक : मनोविज्ञान में एक माना हुआ सत्य है कि मानव मन पर सुझाव का प्रभाव होता है! यह सुझाव उसे नींद या अर्ध नींद में दिए जा सकते हैं! जैसे बहुत सारे मानसिक विकारों को हिप्नोटिज्म के द्वारा ठीक किया जा सकता है, उसी प्रकार नींद में सुझाव से भी बहुत से रोग ठीक किये जा सकते हैं! धार्मिक विश्वास एक धीमे व अनवरत चलने वाले हिप्नोटिज्म जैसे होते हैं! भूत से प्रभावित व्यक्तियों की तरह व्यव्हार और बदली हुई आवाज में बातें करने को मनोविज्ञान में ग्लोसोलालिआ (Glossolalia) कहा जाता है! पूजा और शैतानी नृत्य के दौरान मोहक मूर्छा, विश्वास, पूजा, प्रार्थना, धार्मिक यात्रा, आर्शीवाद, बलि, टोना, पवित्र पानी पीना इत्यादि सब बातें मात्र हिप्नोटिज्म से किसी व्यक्ति के मन पर सुझावों के अतिरिक्त कोई प्रभाव नहीं रखती! गहन समाधि स्वयं पर हिप्नोटिज्म का प्रभाव ही है! यह धीमी गति से चलने वाली प्रक्रिया है! समाधि के द्वारा व्यक्तियों के प्राप्त किये झूठे अनुभव हमेशा उसके धार्मिक भ्रमों के अनुसार ही होते हैं! एक ईसाई को समाधि के द्वारा ‘जीहोवा के दर्शन हो सकते हैं जो स्वर्ग में सोने के सिंहासन पर विराजमान है, उसके दायीं तरफ ईसा मसीह है, उसके चारो तरफ सुन्दर पंखों वाले देवता गीत गा रहे हैं! एक हिन्दू को समाधि के द्वारा ब्रह्मा के दर्शन हो सकते हैं जिनके तीन या पांच सिर है, जो कमल में विराजमान हैं! LSD, गांजा, अफ़ीम इत्यादि इस प्रकार के झूठे द्रश्य उत्पन्न कर सकते हैं! कुछ व्यक्ति गहरी समाधि के द्वारा क्रिप्टोम्नेशिया (Cryptomnesia) नाम की बीमारी के शिकार हो जाते हैं! इस बीमारी वाले व्यक्ति को पागलों जैसा यह विश्वास हो जाता है कि वह दैवीय शक्तियों वाला व्यक्ति है! अनपढ़ और भोले लोग जब मानसिक बीमारी के शिकार होते हैं, तो उन्हें पागल घोषित कर दिया जाता है! वहीँ अगर किसी बुद्धिमान और चालाक व्यक्ति को मानसिक बीमारी घेर ले तो वह अपने श्रोताओं या पाठकों को यह विश्वास दिला देता है कि उसमे ब्रह्मज्ञान, अंतिम सच्चाई और परमात्मा में लीन होने वाले गुण प्राप्त हो गए हैं! ऐसे व्यक्ति आम तौर पर किसी धर्म के प्रचारक या उसकी नींव डालने वाले बन जाते हैं!

  1. झूठे विश्वासों से उत्पन्न भ्रम : यह बचपन में धर्म के प्रति विश्वास पैदा करने के कारण होता है! भूतप्रेत, शैतान, परियां, फ़रिश्ते, ज्योतिष, श्राप, पवित्र जल, शुब समय, शुभ स्थान, शुम वस्तुए, शगुन, अपशगुन, स्वर्ग, नरक इत्यादि झूठे विश्वास हैं!

जैसा की श्री मैनन नें कहा है कि कुछ व्यक्ति अपने मन की प्रसन्नता दुसरे अन्धविश्वास से प्राप्त करते हैं, ठीक ऐसे ही परिणाम L.S.D., गांजा, अफीम का प्रयोग करके भी प्राप्त किये जा सकते हैं! परन्तु प्रश्न यह नहीं है कि किस तरह का प्रयोग शांति या प्रसन्नता प्रदान करता है, बल्कि प्रश्न तो यह है कि क्या यह सत्य है?


संदर्भ ग्रंथ: 1. अब्राहम कोवूर की पुस्तक “और देव पुरुष हार गए”, 2. विकिपीडिया

कौन हैं डाक्टर अब्राहम कोवूर ?

डाक्टर अब्राहम कोवूर दुनिया के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एवं सच्चे अर्थों में तर्कशील व्यक्ति थे! उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अलौकिक घटनाओं के पीछे के सत्य की खोज में व्यतीत कर दिया! उन्होंने लगभग पचास वर्षों तक हर प्रकार के मानसिक, अर्ध मानसिक एवं आत्मिक चमत्कारों का गहराई से अध्ययन किया और इस निष्कर्ष तक पहुंचे कि इन बातों में लेश मात्र भी सत्य नहीं होता! इस संसार के मनोचिकित्सकों में वह अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जिनको इस क्षेत्र में खोज करने के फलस्वरूप पीएचडी की डिग्री प्राप्त हुई! अमेरिका की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा’ ने  मनोविज्ञान एवं ऐसे ही अन्य चमत्कारों की खोज के फलस्वरूप उन्हें पीएचडी की डिग्री प्रदान की! डॉ. कोवूर का कहना है कि जो व्यक्ति अपने पास आत्मिक या अलौकिक शक्तियां होने का दावा करता है, वह या तो धूर्त है या मानसिक रोगी! उनका कहना है कि न तो कोई अलौकिक शक्ति वाला पैदा हुआ है, और न ही किसी के पास अलौकिक शक्ति है! उनकी सत्ता सिर्फ धर्म ग्रंथों और सनसनी फ़ैलाने वाले समाचार पत्रों के पन्नों तक ही सीमित होती है!

केवल डॉ कोवूर ही एशिया के एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्हें अमेरिका के जैव विकास विभाग ने भारतीय समुद्र एवं खाड़ी के अन्य देशों के समुद्रों में ऐसी वस्तुएं खोजने का निमंत्रण दिया था जिनसे जैव विकास की खोज में हो रही त्रुटियों को पूरा किया जा सके! परन्तु उनकी पत्नि की लम्बी बीमारी और बाद में म्रत्यु के कारण उन्हें यह निमंत्रण अस्वीकार करना पड़ा! डॉ कोवूर ने दूर दूर तक यात्रा की और बहुत से देशों में विशाल जनसमूह को संबोधित किया! बहुत से केसों के बारे में उनकी पड़ताल दुनिया की अलग अलग पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं! उनके एक केस की सत्य कथा पर मलयालम भाषा में एक फिल्म का निर्माण भी हो चुका है! एक तमिल नाटक ‘नम्बीकाई’ जो विशाल जनसमूह के आगे कई बार प्रदर्शित किया जा चुका है, भी उनके केसों में से एक पर आधारित है!

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डॉक्टर अब्राहम कोवूर

डाक्टर अब्राहम कोवूर, जिन्होंने अन्धविश्वास के प्रति लोगों को सचेत करने में अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया, का जन्म 10 अप्रैल, 1898 में केरल के एक शहर ‘तिरुवाला में हुआ! डॉ कोवूर के शब्दों में,आज से 75 वर्ष पूर्व मैंने केरल की सुन्दर भूमि पर सीरिया के एक ईसाई परिवार में जन्म लिया! मैं एक ईसाई का पुत्र था और मेरा जन्म भौगोलिक और जीव वैज्ञानिक घटना थी! यह न टो मेरी इच्छा के फलस्वरूप था और न ही मेरा इसपर कोई अधिकार था! जब मैंने होश संभाला तो मैंने उतने ही सौंदर्य से परिपूर्ण देश श्रीलंका को अपना देश एवं तर्कशीलता को अपने दर्शन के रूप में चुन लिया! डॉ कोवूर के पिता ‘रैव कोवूर एक पादरी थे और खुद का एक स्कूल भी चलाते थे! बालक कोवूर ने अपने स्कूल की पढाई अपने पिता के स्कूल में ही पूरी की, और उच्च शिक्षा के लिए अपने छोटे भाई ‘डॉ बहिनान कोवूर के साथ कोलकाता आ गए! उन्होंने बंगवासी कालेज, कलकत्ता से जीव विज्ञान और वनस्पति विज्ञान में निपुणता प्राप्त कर ली!

डॉ कोवूर ने सी.एम्.सी. कोलेज कोट्टायम में दो वर्ष तक सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्य किया फिर 1928 में जाफना (श्रीलंका का एक नगर) के केन्द्रीय कालेज के प्रिंसिपल ‘पी.टी. कैश के निमंत्रण पर वह जाफना चले गए! जाफना में केन्द्रीय कालेज में डॉ कोवूर को अपने प्रथम वर्ष में ही अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों को वनस्पति विज्ञान से साथ ही बाइबिल पढ़ाने के लिए कहा गया! जब कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का परिणाम घोषित हुआ, तो उनके सभी विद्यार्थी अच्छे अंक लेकर पास हो गए! मगर अगले वर्ष डॉ कोवूर को बाइबिल का विषय देने से मना कर दिया गया! जब उन्होंने प्रिंसिपल से इसका कारण पूछा तो प्रिंसिपल ने मुस्कुराकर जवाब दिया, डॉ कोवूर मैं जनता हूँ कि आपने बाइबिल का बहुत अच्छा परिणाम निकाला है लेकिन आपके सभी विद्यार्थियों का धर्म से विश्वास उठ गया है! 1943 में जब पी.टी. कैश रिटायर हो गए तो डॉ कोवूर ने भी जाफना का केन्द्रीय कालेज छोड़ दिया और थॉमस कालेज माउंट लावीनीय में नौकरी कर ली! 1959 में वह थरशटन कालेज कोलम्बो से विज्ञान विभाग के अध्यक्ष पद की सेवा से मुक्त हो गए!

नौकरी से रिटायर होनें के बाद डॉ कोवूर ने अपनी जिंदगी भर के आत्मिक एवं मनोवैज्ञानिक चमत्कारों के अनुसंधानों के बारे में लिखना व बोलना शुरू कर दिया! सभी बच्चों की तरह उनके लिए भी बचपन में अपने माता-पिता की तरफ से धर्म एवं झूठे विश्वासों से बचना पहाड़ जैसा मुश्किल कार्य था! उसी गलती को दोहराने से बचने के लिए डाक्टर कोवूर ने अपने इकलौते पुत्र, एरिस कोवूर को धर्म के नाम पर ऐसे गलत विचारों की शिक्षा न देने का फैसला किया! अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए प्रोफेसर एरिस कोवूर आज फ़्रांस और क्यूबा की सरकारों के अधीन विज्ञान में खोज करने का कार्य कर रहे हैं!

डा कोवूर की पत्नी भी अपने पति के जैसे ही थीं, व अपने पति के कार्यों को पूर्ण समर्थन देती थीं! 1974 में उनकी पत्नी की म्रत्यु नें श्रीलंका में सनसनी फैला दी! वहां की संसद में उनकी म्रत्यु पर यह सन्देश पढ़ा गया,श्रीमती अक्का कोवूर, अपनी आत्मा या रूह को छोड़े बगैर चल बसीं, ताकि वहां के अन्धानुकरण करने वाले लोग फिकर में न पड़ें!  उनकी इच्छा के अनुसार उनके शरीर को श्रीलंका के कोलम्बो विश्वविद्यालय के मैडिसन विभाग में दे दिया गया! उनको जलने, दफ़नाने या फूलों से लादने की कोई रसम नहीं हुई!

50 सालों से भी ज्यादा समय तक अनेक योगी, ऋषि, सिद्ध पुरुष, ज्योतिषी, जादूटोने वाले एवं हस्त रेखा निपुणों से मिलने के बाद और भिन्नभिन्न प्रकार की आश्चर्यजनक घटनाओं और रहस्यपूर्ण व्यक्तियों के तथाकथित चमत्कारों का का बड़ी गहराई से विश्लेषण करने के बाद वे अपने बचपन में सिखाये गए बहुत से भ्रमों से बचनें में सफल हुए! ये ऐसे भ्रम होते हैं जो बचपन में उपदेश द्वारा बच्चों के दिमाग में भर दिए जाते हैं, और जिनसे इस समाज में रहते हुए बचा नहीं जा सकता! ये भ्रम भूतप्रेत, जादूटोने, देवताओं की नाराजगी, नर्क, राक्षस और श्राप आदि के बारे में होते हैं!  चमत्कारों  का  अन्वेषक  होने  के  कारण  डॉ कोवूर ने भोले भाले लोगों को भूतप्रेतज्योतिषजादू– टोना करने वाले,  हस्तरेखा देखने वालेकाले जादू व अन्य  अलौकिक शक्ति वालों से हमेशा बचाने की  कोशिश करते रहे! उनके अनुसार,“वे घटनाएं, वे सैकड़ों भूत घरों एवं प्रेत आत्माओं, जिन के बारे में मैंने खोज की, हर एक में मैंने किसी न किसी मनुष्य को ही इन आश्चर्यजनक घटनाओं को करने का जिम्मेदार पाया! ऐसे अजीबोगरीब काम वे या टो किसी मानसिक बीमारी के कारण या शरारत के कारण किया करते थे! मैंने बहुत से मानसिक रोगियों को, जिनमें प्रेत आता था, ठीक किया है! मैंने उनका इलाज उनमें से प्रेत निकालकर नहीं बल्कि उनको हिप्नोटाइज करके उनके दिमाग से गलत विचारों को दूर करके किया है! मेरा अनुभव है कि कुछ पुजारियों या साधुसंतों को संयोगवश जो सफलताएं मिलती हैं वे केवल पूजा, प्रार्थना या मन्त्रों का रोगी के मन के ऊपर हिप्नोटिक प्रभाव के कारण ही प्राप्त होती हैं! भोलेभले लोग इन इलाजों को भूतप्रेत और देवीदेवताओं के साथ जोड़ देते हैं!

हम में से लगभग हर व्यक्ति निम्नलिखित बातों में विश्वास करता है शुभ समय, लक्की नंबर, शगुन, बुरी नजर, बुरी जुबान, शुभ रंग, शुभ रत्न, जादूटोने, ज्योतिष, हस्तरेखा, अलौकिक शक्ति, प्रेतों का आना, प्रार्थनाओं की अलौकिक शक्तियां, पूजा, मंत्र, बलि, धार्मिक यात्राएं, देवताओं से भेंट, पवित्र राख, पवित्र आदमी, पवित्र स्थान, पवित्र वस्तु, पवित्र समय, टेलीपैथी एवं अन्य बहुत से वहम! डॉ कोवूर की खोज नें उन्हें इस सत्य से साक्षात्कार करवाया कि अन्धानुकरण करने वाले व्यक्तियों में से ऐसे वहम व विश्वासों की जड़ें रहस्यमयी व्यक्तियों ने अपनी आय के साधन को बनाने के लिए लगायी हैं! पूजा, प्रार्थना, भेंट और बलि का प्रभाव तो अन्धविश्वासी लोगों में मनोवैज्ञानिक ढंग से होता है! ये सारी बातें मनुष्य के दिमाग में नींद वाली दवाइयों जैसा प्रभाव डालती हैं! डॉ कोवूर के अनुसार ज्यादातर मानसिक बीमारियों का कारण तो देवताओं, शैतानों का अन्धानुकरण करने वाले लोगों में तथाकथित पवित्र वस्तुओं की अपवित्रता इत्यादि के बारे में पैदा किया डर ही होता है! डॉ कोवूर कहते हैं कि,   मैंने  अपनी  खोज  का  प्रचार  कार्य  सिर्फ  नौकरी  से  रिटायर  होने  के  उपरांत  ही  शुरू  किया  पहले  मैं  अपनी  खोजों  का  प्रचार  करने से  इसलिए  रुका  रहा  क्योंकि  अपनी  रोजी  रोटी  ऐसी  धार्मिक  संस्थाओं  में  कामकर  के  कमा  रहा था  जिनका  कार्य  ही  अन्धविश्वास  का प्रचार   करना   था!

डॉ कोवूर ने दो वर्षों तक हस्त रेखा विद्या व ज्योतिष विद्या सीखा, मगर इस पढाई ने उन्हें इसे व्यर्थ घोषित करनें में ही अधिक सहायता दी! उन्होंने अपने हर कार्य अशुभ दिनों व बुरे शगुनों के साथ शुरू किया! प्रेतों की तलाश में वे प्रेतघरों में सोये! वे और उनकी पत्नी, आधी रात को प्रेतों की खोज में कब्रिस्तान भी गए! उन्होंने कब्रिस्तान से श्रीलंका के रेडियो पर भी बोला! सिंहली, तमिल और अंग्रेजी समाचार पत्रों के माध्यम से उन्होंने तीन अवसरों पर जादूटोने वालों को इस बात की चुनौती दी कि वे उन्हें अपने जादूटोने से निश्चित समय में मार दे! तीनों ही अवसरों पर उन्हें डाक से बहुत से जादूटोने प्राप्त हुए, जिनमें कुछ चाँदी, तांबे की पत्तियों और कुछ कागज के थे! वे कहते हैं, “लंका के लगभग सभी भागों के तांत्रिकों द्वारा भेजे गए इन टोनों के बावजूद मैं आजतक बिलकुल तंदुरुस्त और ठीक हूँ, और जब अन्य मनुष्यों की तरह मर जाऊंगा तो ये टोने वाले यह अवश्य कहेंगे की मैं उनके टोनों के देर के प्रभाव के कारण मरा हूँ!

अंत में उन्होंने पाखंडियों के धोखे एवं गप्पों को इस चुनौती से नंगा किया कि वे अपने चमत्कारों को बिना धोखे वाली स्थितियों में करके दिखाएं और बदले में एक लाख रूपए ले जाएँ! आज से 70 साल पहले एक लाख रूपए की कीमत आज के 40 करोड़ रूपए से भी अधिक रही होगी! उन्होंने कहा,“मैं इनके खतरनाक परिणामों को भी जनता हूँ! यदि दुनिया में एक भी व्यक्ति अलौकिक शक्ति वाला हो, तो मुझे अपना बुढ़ापा अनाथालय में व्यतीत करना पड़ सकता है! मुझे पहले भी यकीन था, और अब भी यकीन है की मैं इन शर्तों में एक भी पैसा नहीं दूंगा, इसलिए मैं अपनी चुनौती को अपनी म्रत्यु तक खुला रख रहा हूँ!” 

डॉ कोवूर ने लोगों द्वारा बताई हुई बहुत सी भूतप्रेत व अलौकिक लगने वाली घटनाओं की पड़ताल की है और लोगों की समस्याएं सुलझाई हैं! उनके द्वारा सुलझाये गए कुछ केसों का वर्णन आगामी लेखों में किया जायेगा! आगामी लेखों में डॉ कोवूर के कुछ संस्मरण भी आयेंगे!