चमत्कारों के रहस्य!

हम भूत-प्रेत, परग्रही द्वारा अपहरण से लेकर भविष्यवाणी करना, हवा से वस्तु उत्पन्न करने से लेकर पुनर्जन्म जैसी विचित्र बातों पर विश्वास कर सकते है। क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है कि शिक्षित व्यक्ति भी इन बातों पर विश्वास करते है?

वैज्ञानिक सोच का अभाव

1.मान्यता द्वारा निरिक्षण पर प्रभाव:

यदि आप किसी सिद्धांत को मानते है तब वह सिद्धांत आपके निरीक्षण को प्रभावित करता है। आप परिणामो को अपने सिद्धांत के अनुसार परिभाषित करते है। कोलंबस भारत को खोजने के लिए अमरीका पहुंच गया था, उसकी मान्यता थी कि यदि वह युरोप के पश्चिम दिशा से यात्रा करेगा तो वह भारत पहुंच जायेगा। जब वह अमरीका पंहुचा, तब उसकी मान्यता के कारण तांबे रंग के मूल अमरीकी निवासीयों को वह भारतीय मान बैठा। यही नही उसे अमरीका मे भारतीय मसाले और जड़ी बुटीयां दिख रही थी। कोलंबस अपनी निरिक्षणों को अपनी मान्यता के बाहर देख ही नही पा रहा था।

2. निरीक्षक द्वारा निरीक्षीत मे परिवर्तन:

किसी भी वस्तु का अध्यन उस वस्तु की अवस्था मे परिवर्तन कर सकती है। यह किसी मानवविज्ञानी द्वारा किसी जनजाति के अध्ययन से लेकर किसी भौतिकविज्ञानी द्वारा इलेक्ट्रान के अध्ययन पर लागु होता है। इसी कारण से मानसीकचिकित्सक “ब्लाइंड और डबल ब्लाइंड तकनीको( blind and double-blind controls)” का प्रयोग करते है। इन तकनिको मे किसी वैज्ञानिक प्रयोग मे शामील व्यक्तियों से वह जानकारी छुपायी जाती है जिससे वह व्यक्ति के चेतन या अवचेतन मष्तिष्क पर कोई पूर्वाग्रह या पक्षपात उत्पन्न हो, ऐसा परिणामो की विश्वसनियता के लिए किया जाता है। छद्म विज्ञानी ऐसा कुछ नही करते है।

3.उपकरण परिणाम का निर्माण करते है:

किसी प्रयोग मे प्रयुक्त उपकरण परिणामों को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए जैसे जैसे हमारे दूरबीनो की क्षमता बढ़ते गयी, हमारी जानकारी मे ब्रह्माण्ड का आकार भी बढ़ता गया। सीधे सीधे शब्दो मे मछली पकड़ने के जाल का आकार उसमे पकड़ी जाने वाली सबसे बड़ी मछली का आकार बतायेगा, ना कि तालाब मे सबसे बड़ी मछली का आकार!

4.श्रुति!= विज्ञान:

हम लोगो से जो किस्से कहानियाँ सुनते है, वह विज्ञान नही होता है। छद्म विज्ञानी श्रुति को मानते है जबकि विज्ञान प्रामाणिक अध्ययन को मानता है।

छद्मवैज्ञानिक सोच की समस्यायें

5.वैज्ञानिक भाषा का प्रयोग उसे वैज्ञानिक नहीं बनाती है:

किसी मान्यता की व्याख्या यदि वैज्ञानिक भाषा/शब्दो के प्रयोग से की जाये तो वह मान्यता वैज्ञानिक नही हो जाती। ज्योतिषी खगोल विज्ञान के शब्दो के प्रयोग से उसे वैज्ञानिक प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं। सं रां अमरीका के “क्रियेशनीज्म” के समर्थको ने अपनी मान्यता को वैज्ञानिक शब्दो/भाषा के प्रयोग कर उसे वैज्ञानिक सिद्धांत के रूप मे पेश किया था लेकिन उनकी चाल पकड़ी गयी थी।

6. निर्भिक कथन उसे सत्य प्रमाणित नही करता है:

यदि आप लाखों लोगो के सामने निर्भिकता से कोई सिद्धांत पेश करें तो इसका अर्थ यह नही है कि आपका सिद्धांत सत्य है। कोई व्यक्ति अपने आपको भगवान कहे तो वह भगवान नही हो जाता। असाधारण कथन/दावे को प्रामाणित करने के लिए असाधारण प्रमाण चाहीये होते है।

7.विद्रोही/क्रांतीकारी मत का अर्थ सत्य नही होता है:

कोपरनीकस, गैलेलीयो तथा राईट बंधु विद्रोही/क्रांतिकारी विचारों के थे। लेकिन विद्रोही/क्रांतिकारी विचारों का होना ही आपको सही साबित नही करता है। होलोकास्ट से इंकार करने वाले विद्रोही/क्रांतिकारी विचार रखते है लेकिन वे गलत है क्योंकि उनके पास इसके प्रमाण नही है, जबकि उनके विरोध मे ढेर सारे प्रमाण है। ग्लोबल वार्मींग के विचार से असहमत लोग भी विद्रोही/क्रांतिकारी विचार रखते है लेकिन वे भी गलत है क्योंकि प्रमाण उनके विरोध मे हैं।

8.प्रमाणित करने की जिम्मेदारी:

असाधारण दावे को प्रमाणित करने की जिम्मेदारी दावा करने वाले व्यक्ति की होती है। यदि कोई व्यक्ति दावा करता है कि उसने अपनी मानसीक शक्ति से पर्वत को हिला दिया है तो उसे प्रमाणित भी करना होगा।

9. अफवाहे सत्य नही होती है:

अफवाहो की शुरुवात होती है “मैने कहीं पढा़ था….” या “मैने किसी से सुना था…..“। कुछ समय पश्चात यह सत्य बन जाती है और लोग कहते है कि “मै जानता हूं कि……….“। इस तरह कि अधिकतर कहांनिया गलत होती है। इंटरनेट की चेन मेल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। एक उदाहरण है मोतीलाल नेहरू के पिता का नाम गयासुद्दीन गाजी होने की इंटरनेट पर फैली अफ़वाह। दूसरा उदाहरण है टाईम्स आफ इंडीया के संपादक द्वारा भारत के प्रधानमंत्री को लिखा गया कथित पत्र।

10. अस्पष्ट का अर्थ रहस्यमय नही होता:

यदि आप किसी घटना की व्याख्या नही कर पा रहे है इसका अर्थ यह नही है कि उसकी व्याख्या नही की जा सकती है। आग पर चलना रहस्यमय लगता है लेकिन यदि आपको उसके पीछे के कारण बता दिये जाये तो वह आपको रहस्यमय नही लगेगा। यह सभी जादू की तरकीबो के साथ है, ये तरकीबे आपको उस समय तक जादुई लगेंगी जब तक आप उसके कार्यप्रणाली को नही जानते है। किसी घटना को कोई विशेषज्ञ भी समझ नही पाये तो इसका अर्थ यह नही है कि भविष्य मे कोई और उसे समझ नही पायेगा। १०० वर्ष पहले जीवाणु, परमाणु एक रहस्य हुआ करते थे। बिजली चमकने को इंद्रदेव का वज्र समझा जाता था।

11. असफलता की तर्कसंगत व्याख्या :

विज्ञान अपनी असफलता को मान्यता देता है, वह अपनी असफलता की तर्कसंगत व्याख्या करता है और अपने आपको पुनर्गठित करता है। यह छद्मविज्ञान के साथ नही होता है, वे असफलता को नजरअंदाज करते है या उसे किसी अज्ञात के मत्त्थे मढ़ देते है। जैसे जन्मतिथि की सही जानकारी ना होने से भविष्यवाणी गलत हुयी, पूजा मे कोई अशुद्ध व्यक्ति के शामिल होने से कार्य सही नही हुआ इत्यादि।

12.अंधविश्वास :

मैने अपने विशेष पेन से परिक्षा दी थी इसलिये अच्छे अंको से पास हुआ। उस खिलाड़ी ने उस नंबर की जर्सी नही पहनी थी इसलिये टीम हारी। इस तरह की मान्यतायें आत्मविश्वास की कमी से आती है। इस तरह की घटनाओ मे परिणाम और मान्य कारको के मध्य कोई संबंध नही होता है।

13. संयोग/संभावना:

अधिकतर लोगो को संभावना/प्रायिकता (Probability) के नियमो की जानकारी नही होती है। मान लिजीये कि आपने किसी को फोन करने फोन की ओर हाथ बढ़ाया और उसी का फोन आ गया। यह संयोग कैसे हो सकता है ? यह तो आपके मन और उसके मन के बीच मे कोई जुड़ाव से ही होना चाहीये ! यहां हम भूल जाते हैं कि हम किसी को हजारो बार फोन करते है, तब उसका फोन नही आता है। यदि आप सचिन तेंदुलकर को गेंद फेंके तब सचिन के बोल्ड होने की संभावना शुन्य नही होती है ! यह किसी सिक्के को उछाल कर चित/पट देखने से अलग नही है। लेकिन हम हर घटना के पीछे एक पैटर्न देखते है और नही होने पर अपने मन के अनुसार एक नया पैटर्न ढूंढ निकालते है!

तार्किक सोच में समस्याएं

14.प्रतिनिधी घटनायें :

कुछ घटनायें असामान्य लगती है लेकिन होती नही हैं। उदाहरण के लिए घर मे रात मे आने वाली खट-खट, ठक-ठक की आवाज भूतों की न होकर चुहों की होती है। बरमूडा त्रिभूज मे कई जहाज लापता हुये है क्योंकि इस भाग मे आने वाले जहाजो की संख्या ज्यादा है। वास्तविकता यह है कि इस क्षेत्र मे होने वाली दुर्घटनाओं का औसत अन्य क्षेत्र की तुलना मे कम है।
मेरे गृहनगर गोंदिया मे एक हाई वे पर एक विशेष स्थान पर दुर्घटनाएँ ज्यादा होती थी। वह स्थान सीधा था, कोई मोड़ नही, कोई बाधा नही। लोग उसे प्रेतात्मा का प्रकोप मानते थे। लेकिन वास्तविकता यह थी कि रास्ते के सीधे होने से लोग गति बढ़ा देते थे और दुर्घटना होती थी। यातायात पोलिस ने रोड विभाजक और गति नियंत्रक लगा दिये। दुर्घटनाएँ बंद हो गयी।

15.भावनात्मक शब्द और गलत उपमायें :

अलंकारो से भरी भाषा कभी कभी सत्य को छुपा देती है। भूषण कवि के अनुसार शिवाजी के सेना के हाथी जब चलते है तब पृथ्वी हिलती है, धूल के बादलो से सूर्य ढंक जाता है। इस तरह की अलंकारीक भाषा कई मिथको को जन्म देती है। विभिन्न धर्मग्रंथो की कहानियोँ मे यह स्पष्ट रूप से दिखायी देती है।
इसी तरह किसी राजनेता को “नाजी”, या “हत्यारा” जैसी भावनात्मक उपमाये दे दी जाती है जिनका अर्थ कालांतर मे बदल जाता है।

16.अनभिज्ञता का आकर्षण :

इसके अनुसार यदि आप किसी को झुठला नही सकते तो वह सत्य होना चाहीये। इसे भूतों, परामानसीक शक्तियों के बचाव मे प्रयोग किया जाता है। जैसे यदि आप भूतों, परामानसीक शक्तियों को झुठला नही सकते हो तो मानीये कि उनका अस्तित्व है। लेकिन समस्या यह है कि सांता क्लाज के अस्तित्व को भी झुठलाया नही जा सकता है। मै दावा करता हूं कि सूर्य मेरे आदेश से निकलता है, कोई इसे असत्य साबित कर के दिखाये ! विश्वास अस्तित्व के सकारात्मक प्रमाणो पर आधारित होना चाहीये, ना कि प्रमाणो के अभाव पर।

17. व्यक्तिगत आक्षेप :

इस विधी मे किसी व्यक्ति के नये क्रांतिकारी आइडीये पर से उस व्यक्ति पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाकर द्वारा ध्यान बंटाया जाता है। जैसे डार्वीन को रेसीस्ट कह देना, किसी नेता को नाजीवादी करार देना। जार्ज वाशींगटन ने मानव गुलाम रखे थे लेकिन उससे उनकी महानता कम नही होती है। महात्मा गांधी पर लगे व्यक्तिगत आरोपो से भी उनकी महानता कम नही होती है।

18.अति साधारणीकरण:

इसे पूर्वाग्रह भी कहते है। इसमे पूरे तथ्यो को न जानते हुये भी परिणाम निकाले जाते है। जैसे किसी स्कूल मे दो शिक्षक अच्छे नही होने पर पूरे स्कूल को बुरा बना देना। या किसी कंपनी के इक्का दूक्का कारो मे आयी समस्याओं से पूरे ब्राण्ड को खराब कह देना।

19. व्यक्ति की छवि पर अति निर्भरता:

किसी भी तथ्य को बिना जांचे परखे नही स्वीकार करना चाहीये , चाहे वह किसी महान सम्मानित व्यक्ति द्वारा ही कहे गये हों। उसी तरह खराब छवि वाले व्यक्ति द्वारा दिये गये अच्छे तथ्य को बिना जांचे परखे खारीज नही करना चाहिये। हाल ही मे हुये अन्ना तथा बाबा रामदेव के आंदोलन इसके उदाहरण है।

20: या तो वह नही तो यह:

इस तर्क मे यदि एक पक्ष गलत है तो दूसरा सही होना चाहिये। उदाहरण के लिए ”क्रियेशन सिद्धांत”* के पक्षधर डार्वीन के ’क्रमिक विकास के सिद्धांत” पर हमला करते रहते है क्योंकि वह मानते है कि क्रमिक विकास का सिद्धांत गलत है। लेकिन क्रमिक विकास के सिद्धांत के गलत होने से भी क्रियेशन सिद्धांत सही सिद्ध नही होता है। उन्हे क्रियेशन सिद्धांत के पक्ष मे प्रमाण जुटाने होंगे।

21. चक्रिय तर्क :

इसमे एक तर्क को प्रमाणित करने दूसरे तर्क का सहारा लिया जाता है, तथा दूसरे तर्क को प्रमाणित करने पहले का। जैसे धार्मिक बहस मे:

क्या भगवान का आस्तित्व है ?
हां।
तुम्हे कैसे मालूम ?
मेरे धर्मग्रंथ मे लिखा है।
तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारा धर्मग्रंथ सही है ?
क्योंकि उसे भगवान ने लिखा है।

विज्ञान मे :

गुरुत्वाकर्षण क्या है ?
पदार्थ द्वारा दूसरे पदार्थ को आकर्षित करने की प्रवृत्ति।
पदार्थ एक दूसरे को आकर्षित कैसे करते है ?
गुरुत्वाकर्षण से।

साधारण बहस मे:

राम कहां रहता है ?
श्याम के घर के सामने।
श्याम कहां रहता है?
राम के घर के सामने ?

22. किसी तथ्य का सहारा लेकर असंगत सिद्धांत हो सिद्ध करना:

इस मे किसी एक सर्वमान्य को तथ्य को लिया जाता है, उस पर एक नये तथ्य को प्रमाणित किया जाता है। दूसरे से तीसरे को, इस क्रम मे किसी असंगत नतिजे पर पहुंचा जा सकता है। जैसे : आइसक्रीम खाने से वजन बढता है। वजन बढने से मोटापा बढता है। ज्यादा मोटापे से हृदय रोग होता है। हृदय रोग से मृत्यु हो सकती है। इसलिये आइसक्रीम खाने से मृत्यु हो सकती है। 
कोई क्रियेशन सिद्धांत का समर्थक कह सकता है कि क्रमिक विकास के लिए भगवान की आवश्यकता नही है। यदि भगवान की जरूरत नही है, तो तुम भगवान को मानते नही हो। भगवान को न मानने मे नैतिकता नही है। इसलिये क्रमिक विकास को मानने वाले भगवान को नही मानते है और अनैतिक होते है।

सोचने में मनोवैज्ञानिक समस्याएं

23.प्रयास मे कमी तथा निश्चितता, नियंत्रण और सरलता की आवश्यकता:

हममे से अधिकतर निश्चितता चाहते है, अपने वातावरण पर नियंत्रण चाहते है और सरल व्याख्या चाहते है। लेकिन प्रकृति इतनी सरल नही है। कभी कभी हल सरल होते है लेकिन कभी कभी जटिल। हमे जटिल सिद्धांतो को समझने के लिए प्रयास करना चाहीये नाकि अपने आलस के कारण उन्हे ना समझ पाने के फलस्वरूप खारीज करना चाहिये।

24. समस्या के हल मे प्रयास की कमी:

किसी समस्या को हल करते समय हम एक अवधारणा बना लेते है और उसके बाद हम उस अवधारणा के अनुसार उदाहरण देखना शुरू कर देते है। जब हमारी अवधारणा गलत होती है तब हम उसे बदलने मे देर करते हैं। इसके साथ हम सरल हल की ओर झुकते है जबकि वह हर पहलू को हल नही करते हैं।

25.वैचारिक स्वाधीनता :

हम अपने मूलभूत विचारो से समझौता पसंद नही करते है। जो नये विचार हमारे परिप्रेक्ष्य मे सही नही होते है उनसे बचने के लिए हम अपने चारो ओर एक दीवार खड़ी कर देते है। जितनी ज्यादा प्रतिभा होगी, यह दिवार उतनी ऊंची होती है। हमारे विचित्र विचारो पर विश्वास रखने मे यह सबसे बड़ी बाधा होती है। हम इसरो और डी आर डी ऒ के वैज्ञानिको को हाथो मे अगुंठिया पहने देख सकते है।

माइकल शेर्मर की बेहतरीन पुस्तक “Why People Believe Weird Things” पढने के बाद उपजी पोस्‍ट।

* क्रियेशन सिद्धांत : इसके अनुसार पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति किसी दैवीय शक्ति ने की है। यह डार्विन के प्रचलित क्रमिक विकास के सिद्धांत को नहीं मानता है।
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कहानी एक भूत की

अरुण सिंघो का घर एक पागल खाना था! पिछले आठ महीनों से एक दुष्ट आत्मा नें अरुण सिंघो, उसकी पत्नी पोदी हैमी और इकलौती पुत्री प्रेमावती का जीना मुश्किल कर दिया था! पांच बार चौकियां लगाने के बाद भी यह आत्मा उनके घर से नहीं निकली थी! रेत व पत्थर प्रत्येक स्थान पर फेंक दिए जाते थे! तेल के दीपकों से जब कोई आसपास भी नहीं होता था तो उससे लपटें निकल आती थीं! अदृश्य हाथों नें पुत्री के केश काट लिए थे! आत्मा के लिखे गए पत्र पता नहीं कहाँ से आ जाते थे! वस्तुएं हवा में उड़ती हुई नजर आती थीं! अलमारियों में बंद कपड़े कैंची से काट दिए जाते थे! रहस्यपूर्ण व अद्भुत सी लिपियाँ दीवारों पर लिखी जाती थीं! उबलते हुए चावलों में कोई रेत डाल जाता था!

जांच के लिए प्रस्थान

अरुण सिंघो के घर से भूत शांत करने के लिए मेरी सहायता लेने के लिए कोसगामा निवासी डी. वाई. राणा सिंघे की तरफ से की गयी अपील के जवाब में 25 नवम्बर, 1963 दिन सोमवार को मेरे व मेरी पत्नी के साथ संवाददाताओं की एक टोली ने कोलम्बो को प्रस्थान किया! रास्ते में हम माईगोडा महाविद्यालय के पास अरुण सिंघो के घर पनालूवा का रास्ता पूछने के लिए ठहरे! स्कूल के प्रिंसिपल श्रीमान पी. बीरा सिंघे भूत वाले घर तक हमें कार में ले जाने के लिए तैयार हो गए! हम माइगोडा जंक्शन से ऊंची सड़क से नीचे आये और एक चाय की दूकान के सामने पनालूवा सड़क के तीसरे मील पत्थर के पास ठहर गए! जो ग्रामीण लोग वहां इकठ्ठा हो गए थे, उन्होंने हमें बताया कि अरुण सिंघो के घर पहुँचने के लिए हमें चावल व रबड़ के खेतों में से आधा मील पैदल चलना पड़ेगा!

जिस दिन से अरुण सिंघो के घर में पागल कर देनी वाली इन गतिविधियों की चर्चा पड़ोसी गावों में पहुंची थी, इस चाय दूध वाले की दुकान का काम काफी बढ़ गया था! सारा दिन वहां से पुरुष, स्त्रियाँ व बच्चे भूत वाले घर जाकर अपनी उत्सुकता को संतुष्ट करने के लिए गुजरते थे! इस चाय दूध वाली दुकान पर वे आराम कर लेते! जब हम पनालूवा वाली सड़क पर कार से गुजर रहे थे तब गाँव वाले लोगों ने मुझे पहचान लिया था, क्योंकि उन्होंने समाचार पत्रों में मेरे फोटो देख रक्खे थे! हम आगे जाने के लिए तैयार ही थे तो एक काफी बड़ी भीड़ हमारे इर्द गिर्द आ जुड़ी थी! हमारी टोली भीड़ के साथ एक लाइन में बढती जा रही थी! जब हम बढ़ते जा रहे थे तो मेरी पत्नी की अचानक चीख ने भीड़ को चौंका दिया! दो ग्रामीण स्त्रियों ने मेरी पत्नी के पैरों में चिपकी जोंक को निकालने में मदद की! वे हँस रही थीं! हम अरुण सिंघो के घर दोपहर के साढ़े तीन बजे पहुँचे!

भूत वाले घर का दृश्य

अरुण सिंघो का छोटा सा व नया घर रबर के वृक्षों के प्लाट के बीच स्थित था! घर के अन्दर जाने से पहले जो चीजें हमने देखि थी सामने वाली दीवार पर बड़े बड़े अक्षरों में सिंहली भाषा में लिखा हुआ था, “इस घर में भूत रहता है!” अरुण सिंघो नें हमें बताया, “इसे भूत ने दो महीने पहले लिखा था, घर के भीतर की दीवारों पर ऐसी और भी पंक्तियाँ हैं!” वह हमें भीतर ले गया! हम बड़े कमरे में चले गए! कोयले से कमरे की चारो दीवारें लिखितों से भरी पड़ी थीं! यद्यपि बहुत से गलतियों के साथ लिखितें सिंहली भाषण में ही थीं, लेकिन कहीं कहीं लिखतें अंग्रेजी के शब्द भी अंकित थे! अंग्रेजी के कई शब्द उलटे लिखे हुए थे जिससे ज्ञात होता था कि भूत इस विदेशी  भाषा में निपुण नहीं था! लेकिन वह केवल नक़ल करने की कोशिश कर रहा था! कई जगह लिखितें सिंहली भाषा में एक दुसरे के ऊपर लिखी थीं जिससे पढ़ी नहीं जा सकती थीं!

क्या कुछ घटित हुआ था?

जब से रहस्यपूर्ण गतिविधियाँ शुरू हुईं थी, तब से लेकर घर में क्या कुछ घटित हुआ था, इसके बारे में मुझे अरुण सिंघो व उनकी पत्नी पोदी हैमी ने इकट्ठे बताना शुरू किया! “यह सब आठ महीने पहले घटित हुआ”, अरुण सिंघो ने कहा! सबसे पहले कमरे की छत से रेत गिरी! कुछ दिनों बाद पत्थर गिरने शुरू हो गए! कई पत्थरों का आकर आधी ईंट के बराबर था! इसके बाद कप, प्लेट व प्यालियाँ हवा में उडनी शुरू हुईं! यद्यपि वे अलमारी में ताला लगाकर रखी होती थीं फिर भी वे बहार फेंक दी जाती थीं! भूत ने पंद्रह कप व प्यालियाँ तोड़ दी हैं! उसनें मिटटी के कई बर्तन जमीन पर फेंककर तोड़ डाले हैं! हमने रसोई से कई बर्तन बाहर फेंके जाते हुए देखे हैं, उस समय भी जब रसोई में कोई नहीं होता था! भूत वहीँ जाता है जहाँ हमारी बेटी प्रेमवती जाती है! कई बार तेल वाले दीपकों की लपटें अद्रश्य मुहों से बुझाई जाती हैं, जबकि सभी दरवाजे और खिड़कियाँ बंद होती हैं, ताकि ऐसा हवा में ही न होता होगा! हम देश के कोने कोने में प्रसिद्ध कई भूत प्रेत निकलने वाले ला चुके हैं! यद्यपि भिन्न भिन्न टोलियों की तरफ से पांच बार चौकी लगायी गयी थी, लेकिन कष्ट उसी तरह से है! पांचवी चौकी लगाये अभी तीन दिन ही हुए हैं!

भूत ने पांच बार प्रेमवती के केश काटे हैं! उस अवसर पर पोदी हैमी नें एक संदूक खोला और कागज का एक डिब्बा लेकर आई, जिसमें केशों का एक लम्बा गुच्छा था जिसने कभी प्रेमवती के सिर को श्रृंगारा था! यह काफी लम्बा व भरी था जिससे एक पूरे आकर का जूडा बनाया जा सकता था! “भूत नें केश काटने के लिए रसोई का चाकू प्रयुक्त किया था! उसको केश काटने का उस समय पता चला जब भूत के हाथों से यह चाक़ू केशों के लच्छे के साथ फर्श पर गिरा! जब यह घटित हुआ, तो वह बहुत जोर से रोई! जब हम उसकी सहायता के लिए भागे तो हमने भी फर्श पर चाक़ू व केशों के गुच्छ दोनों गिरे हुए देखे!” पोदी हैमी बताती गयी, “मेरी कई साड़ियाँ और प्रेमवती की कई फिराकें जो कि अलमारी में ताला लगा कर बंद की हुई थीं, भूत ने फाड़ दी हैं!  भूत मेरी साड़ियों से टुकड़े फाड़कर गुडिया बना लेता है! कई टुकड़े जाकेटों के नमूने तैयार करने में प्रयुक्त किये जात्ते हैं!

एक दिन लाल मिर्च, नमक और नारियल का चूरा फर्श पर बिखरा हुआ देखा गया था! कई बार हमें भूखे ही सो जाना पड़ता था क्योंकि उबलते हुए चावलों के बर्तन में रेट डाल दी जाती थी! एक बार काटे हुए हाथों ने (केवल पंजे ही) प्रेमवती से चावलों की प्लेट खींच ली थी! जो कपड़े अलमारी से गुम हुए थे, बाद में वे छत से मिल गए थे! भूत यह संकेत देता हुआ पत्र फेंक देता था कि गुडिया कैसे संभाली जाएँ! जब जब प्रेमवती को उसके मामा राणा सिंघे के घर भेजा गया तो भूत भी उसके साथ ही गया! जब वह वहां थी तो भूत नें राणा सिंघे के मेज पर धमकी पूर्ण पत्र फेंका, कि यदि प्रेमवती को वापिस नहीं भेजा तो वह राणा टाइम पीस तोड़ देगा! भूत ने राणा सिंघे के बच्चे की दूध वाली शीशी फोड़ डाली थी!  रबर के जम रहे दूध में रबर के वृक्षों के बीज फेंक दिए जाते थे! जब घर के भीतर या बहार लोग जमा हो जाते थे तो भूत उनको पत्थर मारता था! कई बार जाने पहचाने लोगों के बारे में टिप्पणियां लिखी जाती थीं! और कागज की वे चिटें उनके पास फेंक दी जाती थीं! 

जाँच – पड़ताल का कार्यक्रम

घर के भीतर दाखिल हो रही भीड़ को काबू करना कठिन काम था! वे सभी उस भूत को देखने के लिए उत्सुक थे जिसको मुझे पकड़ना था! उनमें से कई यह सोंचते होंगे कि मैं घर में से भूत को गले से पकड़कर बहार आऊंगा! जितने समय तक भीड़ बहार न चली जाती, मेरे लिए जांच पड़ताल करना संभव नहीं था! समूह के सभी सदस्य हैरान हो गए, जब मेरे बहार आकर हुक्म देने से ही साड़ी भीड़ बाहर  चली गयी! वे सेना की टुकड़ी की तरह आगे बढ़ते जा रहे थे, जैसे उनके कप्तान ने हुक्म दिया हो! ‘वाली’ अपना कैमरा चलाने में काफ़ी क्रियाशील था और लाइटे सभी तरफ घुमा रहा था! मैंने भीतर वाले कमरे में अपनी जांच शुरू की! मैंने उस कमरे में अपने साथ केवल तीन और आदमी रुकने की आज्ञा दी; मेरी पत्नी, तिलकरत्ने और द्विभाषिए का कार्य करने के लिए काइगोडा महाविद्यालय का प्रिंसिपल!

घर के तीन मेंबर अकेले अकेले मेरी तरफ से जांच के लिए बुलाये गए! जब एक से पूछताछ की जाती तो बाकी के दोनों मेंबर बहार के कमरे में ही बैठे रहते! मैंने इस बात पर दबाव डाला कि वे सिर्फ वही बात कहें, जो उन्होंने अपनी आँखों से खुद देखी हों! उस चीज के बारे में बात न करें, जो उन्होंने किसी से सुनी हों! मैंने अरुण सिंघो से बात शुरू करके प्रेमवती  पर पहुँच कर जांच ख़तम कर दी! जांच के दौरान नीचे लिखे तथ्य सामने आये!

जांच के दौरान सामने आये तथ्य

अरुण सिंघो की आयु 62 वर्ष और पोदी हैमी की 54 वर्ष है! उनकी शादी 1948 में हुई! पोदी हैमी संतान विहीन थी! उन्होंने प्रेमवती को, जब वह 15 दिन की थी, गोद लिया था! उनको लड़की के पिता का कोई पता नहीं था, माँ नहीं चाहती थी कि यह जीवित रहे! अब प्रेमवती की आयु बारह वर्ष है! वह पढाई में बहुत पीछे है! यद्यपि उसकी आयु 12 वर्ष है, वह तीसरी कक्षा में ही है! अपनी सहपाठियों जैसा उसका स्वास्थ्य भी नहीं है और वह अभी यौवना भी नहीं हुई! प्रेमवती का स्कूल या पड़ोस में कोई दोस्त नहीं है! वह दूसरी लड़कियों से अलग रहती है! पोदी हैमी के अनुसार दुसरे बच्चे ख़राब होने के कारण इस घर आने नहीं दिए जाते, ताकि उनकी बच्ची ख़राब न हो जाए! प्रेमवती को यह कभी नहीं बताया गया था कि वह गोद ली हुई है! उसका उन्होंने अपनी गुडिया की तरह ही पालन पोषण किया था! लगभग आठ महीने पहले वह स्कूल से रोटी हुई घर लौट आई थी! उसने बताया कि उसके सहपाठी उसे यह कहकर चिढ़ाते हैं कि वह एक गोद ली हुई बच्ची है! लेकिन अरुण सिंघो और पोदी हैमी ने उसे यह कहकर शांत किया था कि वह लड़कियां झूठ बोलती हैं! चूंकि स्कूल की लड़कियां उसे चिढाती रहीं, उसने स्कूल से ही घृणा करना आरम्भ कर दिया और अंत में स्कूल जाने से ही मना कर दिया!

सुलझ गयी गुत्थी

जब मैंने प्रेमवती से पूछताछ की तो मैंने बिलकुल अलग ही अंदाज धारण कर लिया! मैंने बहुत ही नम्रता और प्यार से चेहरे पर मुस्कराहट लाकर उससे बात की! मैंने उसे अपने नाक पर देखने के लिए कहा! इस समय पर मैं, मेरी पत्नी और गुणाशेखर के बिना सभी को कमरे से बाहर जाने का संकेत किया! लगभग तीस मिनटों के बाद प्रेमवती को कमरे से बाहर भेज दिया गया और उसके माँ बाप को फिर से भीतर बुला लिया गया! दस मिनटों के बाद हम सभी कमरे से बाहर आ गए!

मैंने आँगन से बाहर आकर एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया! मैंने कहा, “आज से इस घर में कोई कष्ट नहीं होगा! अरुण सिंघो नें लाख रुपये से भी ज्यादा भूत प्रेत निकलने वालों पर खर्च कर दिए थे, उस भूत को भागने के लिए जो कहीं था ही नहीं! जो गतिविधियाँ घर पर हुईं, वह दिमागी तौर पर बीमार घर के एक सदस्य के द्वारा हुईं! उस व्यक्ति ने भविष्य में ऐसा न करने का मुझे वचन दिया है! यदि दुबारा तकलीफ शुरू हो जाए तो उस व्यक्ति का ईलाज, उस व्यक्ति को किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ से ठीक करवाना है, चौकियां लगवाना नहीं! मनुष्य ने अपने आदिकालीन समय में सोंचता था कि उसकी सभी शारीरिक और मानसिक बीमारियों का कारण दुष्ट आत्माएं हैं, और उसका इलाज जादूटोना है! आज केवल वही व्यक्ति जिनके दिमाग आदिकालीन समय तक ही विकसित हुए हैं, ऐसी बीमारियों के लिए जादूटोने करेंगे!” लोगों की भीड़ से गहरे सम्मान से हम वापस लौट पड़े! श्रीमान गुणाशेखर की ओर से की गयी विशेष प्रार्थना पर हम उसकी माईगोडा महाविद्यालय स्थित कोठी में कुछ मिनटों के लिए ठहर गए! गुणाशेखर की पत्नी की ओर से तैयार की गयी चाय पीते समय मैंने टुकड़ी के दुसरे सदस्यों को बताया कि प्रेमवती पागल या भूत कैसे बन गयी थी!

विश्लेषण : प्रेमवती भूत कैसे बन गयी?

“यह जान लेना कि, जिस माँ बाप को वह इतना प्यार करती थी, उसके नहीं थे, प्रेमवती की आयु की लड़की के लिए एक बहुत बड़ी दिमागी चोट थी! किशोरावस्था से पहले एक लड़की के लिए अपने प्यारे व्यक्ति की कमी का मानसिक दुःख, एक नवयुवती के अपने कामुक प्रेमी की कमी के दुःख जितना गहरा होता है! इस मानसिक दुःख की खराबी ने उसे पागल बना दिया था! प्रेमवती अपने स्कूल की दूसरी लड़कियों की तरह लगने के लिए, अपनी अचेत इच्छा पूर्ती के लिए स्वयं ही अपने केश काटा करती थी! यद्यपि उसकी शारीरिक आयु बारह वर्ष थी, लेकिन दिमागी तौर पर वह छहसात वर्ष की ही थी! सात वर्ष की दूसरी लड़कियों की तरह वह भी गुड़ियों से खेलना चाहती थी, लेकिन उसे ऐसा करने नहीं दिया जाता था! इसलिए वह अपनी माँ की साड़ियाँ फाड़ती थी और उनसे गुड्डियाँ बनाती थी! पढाई में उसका पिछड़ापन उसकी कमजोर बुद्धि के कारण था! उसकी माँ की तरफ से, जब वह गर्भ में ही थी, गर्भपात करवाने की कोशिश से मैं समझता हूँ कि उसकी जिंदगी के पहले पंद्रह दिन उसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया था! और उसको एक अनिच्छित बच्चे की तरह धुतकारा गया था! उसका पिछड़ा हुआ शारीरिक व मानसिक विकास और उसकी बच्चों जैसी बीमारियों का कारण, उसकी जिंदगी के आरंभिक कुछ कुछ दिनों में अच्छे पौष्टिक भोजन की कमी हो सकते हैं! अब वह किस हद तक साधारण जैसी हो सकती है, यह अरुण सिंघे व उसकी पत्नी की होशियारी व समझदारी पर निर्भर करता है!

क्या वे अस्वाभाविक घटनाएँ वास्तव में हुई थीं?

मुझे यह विश्वास है कि आप बहुत सी भय और घबराहट से माता-पिता की तरफ से न मानने योग्य कल्पित कहानियों को सुनते होंगे! जो कुछ उन्होंने बताया मैंने उसको ज्यादा महत्व नहीं दिया! मैं जहाँ कहीं भी जांच पड़ताल के लिए जाता हूँ, मुझे ऐसी न मानने योग्य कल्पित कहानियां प्रायः सुननी पड़ती हैं! घर के सदस्य जो यह विश्वास कर लेते हैं कि उनके घर भूत रहता है, प्रायः भय की भावना के अधीन रहते हैं और वे स्वयं धोखे का शिकार हो जाते हैं! ऐसी स्थिति में वे सभी अविश्वसनीय गतिविधियों को जिनको, करने वाला जिम्मेदारी नहीं लेता, प्रायः किसी भूत की क्रिया मान लेते हैं! और ऐसा भूत-प्रेत वास्तव में कहीं होता ही नहीं! वे बहुत ही घबराए हुए, उत्तेजित हो जाते हैं, इसलिए उनकी साक्षी को कोई महत्व नहीं दिया जाता! आज मेरी व्यक्तिगत जांच पड़ताल के दौरान, न तो अरुण सिंघे ने और न ही पोदी हैमी ने किसी ऐसी अस्वाभाविक घटना के बारे में बताया, जैसे की वस्तुओं का हवा में उड़ना, कटे हुए हाथ, अद्रश्य मुंह, प्रेमवती का पीछा करता हुआ भूत आदि!

(यह डॉ अब्राहम कोवूर की पुस्तक  Begone Godmen में दी गयी एक घटना का हिंदी रूपांतरण है!)

भ्रमात्मक अनुभव

किसी व्यक्ति का विश्वास उसके अपने प्रयोगों के आधार पर निर्मित होता है! क्या किसी व्यक्ति के ग्रहण किये अनुभव मात्र इसलिए छोड़ देना उचित है कि वह अनुभव आप प्राप्त नहीं कर सके? रात्रि में जब मैं आकाश में देखता हूँ, तो मुझे एक भी तारा नहीं दिखाई देता, क्योंकि मैं अंधा हूँ! मुझसे आगे वाली सीट पर बैठा व्यक्ति यदि आकाश में लाखों तारे देख लेता है, तो क्या यह उचित होगा की मैं मैं उसपर यह आरोप लगाऊं कि वह झूठ बोल रहा है? यदि कोई व्यक्ति दूरबीन से और भी अधिक दूर देख ले और मुझे उनके बारे में बताये तो क्या यह उचित होगा की मैं उसे एक कल्पना कह दूं? साधारण व्यक्ति में जोइलूइस या सैंडो की तरह शक्ति नहीं होती! इन शक्तिशाली व्यक्तियों में रामानुजन या आइन्स्टीन की तरह बुद्धि नहीं होती! यदि ऐसा है तो  क्या यह संभव नहीं है, कि कुछ व्यक्तियों में दूसरों की अपेक्षा अलौकिक एवं आध्यात्मिक अनुभव ज्यादा हों? मेरा यही विश्वास मुझे शांति और प्रसन्नता प्रदान करता है! इसी तरह यदि दूसरे भी अपनी शांति व प्रसन्नता किसी और विश्वास में से प्राप्त करते हों तो मैं उनको ठेस पहुँचाने का प्रयत्न क्यों करूँ?

श्री के.पी. केशवा मैनन जो कि भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और बाद में श्रीलंका के भारतीय राजदूत भी थे, ने अपने 83वें जन्मदिवस के अवसर पर एक भारतीय पत्रिका के लिए लेख लिखा था, यह उसी का एक छोटा सा भाग है! श्री मैनन एक लेखक और पत्रकार भी थे! अपने बुढ़ापे में श्री मैनन जो भी लिखते थे, लाखों भारतीयों द्वारा उसे बड़ी उत्सुकता से पढ़ा जाता था, उनके शब्दों को बड़ा विद्वतापूर्ण समझा जाता था! श्री मैनन नें ऊपर जो कुछ भी लिखा है, बहुत से बुद्धिमान और विचारशील व्यक्तियों को यह एक मान्य दलील लगेगी! इसीलिए आइये अब हम मनोवैज्ञानिक ढंग से मनुष्य के विश्वास व मानसिक अनुभवों की जांच करें!

मनुष्य में अनुभव दो प्रकार के होते हैं, वास्तविक अनुभव और भ्रमात्मक अनुभव!

बहिर्मुखी अनुभव सत्य व वास्तविक होते हैं! तर्क व प्रयोगों द्वारा इनकी पड़ताल करके इनकी वास्तविकता का पता लगाया जा सकता है! जैसे दूरबीन या नंगी आखों से तारे देखना, इलेक्ट्रान का होना! अंतर्मुखी अनुभव सत्य तो हो सकते हैं, मगर आवश्यक नहीं कि वह वास्तविक भी हों! कई परिस्थितियों में तर्क व प्रयोगों द्वारा इनकी पड़ताल भी नहीं की जा सकती(यहाँ सत्य का अर्थ है कि कहने वाला अपनी पूरी जानकारी और समझ से सत्य बोल रहा है जबकि वास्तविक का अर्थ है उसके द्वारा बताई जा रही घटना वास्तव में घटित हुई है!)

उदाहरणतः एक छोटे बच्चे को नींद में बिस्तर पर मूत्र करने की बीमारी है! उसकी नासमझ माँ इस बात के लिए उसे रोज दण्डित करती हैं! इस घटना की वास्तविकता क्या है? यही कि जब लड़के का मूत्राशय भर जाता है तो उसके मस्तिष्क में इसकी सूचना पहुँचती है! यह सूचना बच्चे में एक सपना उत्पन्न करती है! बच्चा सपने में बिस्तर से उठकर मूत्रालय जाता है और वहां मूत्र त्यागता है! मगर असल में वह बिस्तर पर ही मूत्र त्याग देता है! यदि प्रातःकाल उठकर बच्चे के जागने से पूर्व ही उसका गीला बिस्तर बदलकर उसे सूखे बिस्तर पर सुला दिया जाये, तो जागने पर वह अपने बिस्तर को सूखा देखकर प्रसन्न हो जायेगा और अपनी माँ से उत्सुकतापूर्वक जाकर कहेगा, “माँ, आज रात में मैंने बिस्तर पर मूत्र नहीं किया, बाहर जाकर मूत्रालय में किया था!” बच्चा बिलकुल सत्य बोल रहा है, मगर यह वास्तविकता नहीं है! यह सत्य इसलिए है क्योंकि यह बच्चे का कल्पित अनुभव है! मगर जांच करने पर यह पता चल जायेगा कि उसने बिस्तर पर ही मूत्र त्यागा था!

भ्रमात्मक अनुभव तीन प्रकार के होते हैं—

. ज्ञानेन्द्रियों से उत्पन्न भ्रम,. मानसिक भ्रम,. झूठे विश्वासों से उत्पन्न भ्रम

  1. ज्ञानेन्द्रियों से उत्पन्न भ्रम : पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होने के कारण यह भी पांच प्रकार के होते हैं– दिखाई देने वाले भ्रम, स्वाद वाले भ्रम, सुनने वाले भ्रम, स्पर्श वाले भ्रम व सूंघने वाले भ्रम! गर्मी के दिनों में सड़क पर पानी का दिखाई देना, रेगिस्तान की मरीचिका आदि द्रष्टि भ्रम हैं! आपने ध्यान दिया होगा, पक्की सड़क पर जाते हुए गर्मी के दिनों में दूर से पानी दिखाई देता है, मगर जैसे ही उसके पास जाओ वहां कोई पानी नहीं होता, अब पानी और दूर दिखाई देने लगता है! यह मात्र एक द्रष्टि भ्रम होता है, जिसके कारण को भौतिक विज्ञान के माध्यम से समझा जा सकता है! इसीप्रकार करौंदे के पत्ते को खाने के बाद पानी पीने से पानी मीठा लगता है, मीठा बिस्कुट खाने के बाद चाय मीठी नहीं लगती जबकि न तो पानी मीठा होता है न ही चाय फ़ीकी होती है, यह स्वाद भ्रम है!

बहुत से लोग जिन्हें भूतप्रेत, देवीदेवता या परियों आदि में विश्वास होता है, उनको अँधेरे में यह सब मात्र द्रष्टि भ्रम के कारण ही दिखाई पड़ते हैं! उस डर के कारण, जो इन लोगों के मन में बचपन में ही बैठा दिया जाता है, ये लोग पास जाकर उसकी जांच करने का साहस ही नहीं करते!

  1. मानसिक भ्रम : मानसिक भ्रम चार प्रकार के कारणों से उत्पन्न हो सकते हैं भौतिक, रासायनिक, जीव वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक!

भौतिक : आज विज्ञान के द्वारा मनुष्य में कृत्रिम भावनाएं उत्पन्न की जा सकती हैं! मतलब डर, भूख, नींद, प्रेम, उत्सुकता, ख़ुशी, दोस्ती या नफ़रत मात्र मस्तिष्क के किसी भाग को तरंगों के द्वारा उत्तेजित करके उत्पन्न किया जा सकता है! यही प्रक्रिया ढोलक की आवाज, तालियों की आवाज, संगीत और नृत्य, मंदिरों में पूजा, विभिन्न सभाओं इत्यादि के द्वारा भी संपन्न की जा सकती है! यह सभी क्रियाएं मस्तिष्क के तंत्र को उत्तेजित करती हैं, जिससे उसमें मानसिक भ्रम उत्पन्न होनें लगता हैं और वह व्यक्ति आवेशित हो जाता है!

रासायनिक : चरस, अफीम, धतूरा, गांजा, हेरोइन, L.S.D. जैसे पदार्थ मस्तिष्क को उत्तेजित करते हैं और व्यक्ति को मानसिक भ्रम उत्पन्न हो जाता है!  L.S.D. के खोजकर्ता अल्बर्ट हाफमैन (Albert Hofmann) ने L.S.D. की थोड़ी सी मात्रा लेने के उपरांत उसके शक्तिशाली प्रभाव के बारे में कुछ इस तरह बताया,…मामूली चक्कर और बेचैनी थी! मैं लेट गया और अत्यंत उत्तेजित काल्पनिक अवस्था में डूब गया! सपने जैसी स्थिति में बंद आँखों से मैं दिन के प्रकाश को स्पष्ट देख रहा था! मैं असाधारण आकार की तीव्र चमक और जल्दी जल्दी बदलते हुए रंगों वाली शानदार तस्वीर को लगातार  देख रहा था! लगभग दो घंटे बाद स्थिति सामान्य हो गयी! इन जैसे पदार्थो की बहुत ही सूक्ष्म मात्रा (एक मिलीग्राम का करोडवां हिस्सा) भी मानसिक उन्माद उत्पन्न करने के लिए काफी होता है! ऐसे रासायनिक पदार्थ मानसिक विकार वाले लोगों के खून में पाए जाते हैं! कभी कभी कुछ पुजारी नशीले पदार्थों को प्रसाद में मिला देते हैं, जिसे दर्शनार्थियों में धार्मिक उन्माद उत्पन्न हो जाता है! इसका एक उदाहरण मद्रास के मुथुमुदाली मोहल्ले में बालाजी का एक मंदिर है! 7 मई, 1963 को यहाँ के मुख्य पुजारी को 256 किलोग्राम गांजा रखने के अपराध में गिरफ्तार किया गया था! मुकदमें के दौरान पता चला कि यह पुजारी प्रसाद में गांजा मिलाया करता था, जिससे लोगों में धार्मिक उन्माद उत्पन्न किया जा सके!

जीव वैज्ञानिक : बेरीबेरी रोग विटामिन बी की कमी से होता है! पागलों जैसा आचरण इसका महत्वपूर्ण चिन्ह है! विटामिन की ही कमी के कारण उत्पन्न रोग पिलरागा मानसिक विकार का कारण बन सकता है! ऐसे व्यक्तियों को विटामिन की पूरी मात्र देकर पूर्व स्थिति में लाया जा सकता है! विटामिन की ही तरह शरीर में कुछ उत्पन्न होने वाले उत्तेजक रसों के असंतुलन से भी मानसिक विकार जन्म ले लेते हैं! वे व्यक्ति जिनमे पैराथायराइड ग्रंथि द्वारा पैदा किये गए रस की कमी होती है, भी गंभीर मानसिक भ्रम के शिकार हो जाते हैं! डॉ कोवूर एक बताते हैं, “मेरी एक भतीजी जब भी आकाश की तरफ देखती तो  उसे मेरी मृत माँ की आत्मा दिखाई देती! मैं उसे केरल के अपने पैतृक घर से श्रीलंका ले आया! पूरी तरह जांच करने पर पता चला कि उसकी पैराथाईराइड ग्रंथि में खराबी थी! इस खराबी को दूर करने के लिए उसे कैल्शियम दिया गया और इसके साथ ही उसे आकाश में मेरी माँ की आत्मा दिखाई देनी बंद हो गयी!

मनोवैज्ञानिक : मनोविज्ञान में एक माना हुआ सत्य है कि मानव मन पर सुझाव का प्रभाव होता है! यह सुझाव उसे नींद या अर्ध नींद में दिए जा सकते हैं! जैसे बहुत सारे मानसिक विकारों को हिप्नोटिज्म के द्वारा ठीक किया जा सकता है, उसी प्रकार नींद में सुझाव से भी बहुत से रोग ठीक किये जा सकते हैं! धार्मिक विश्वास एक धीमे व अनवरत चलने वाले हिप्नोटिज्म जैसे होते हैं! भूत से प्रभावित व्यक्तियों की तरह व्यव्हार और बदली हुई आवाज में बातें करने को मनोविज्ञान में ग्लोसोलालिआ (Glossolalia) कहा जाता है! पूजा और शैतानी नृत्य के दौरान मोहक मूर्छा, विश्वास, पूजा, प्रार्थना, धार्मिक यात्रा, आर्शीवाद, बलि, टोना, पवित्र पानी पीना इत्यादि सब बातें मात्र हिप्नोटिज्म से किसी व्यक्ति के मन पर सुझावों के अतिरिक्त कोई प्रभाव नहीं रखती! गहन समाधि स्वयं पर हिप्नोटिज्म का प्रभाव ही है! यह धीमी गति से चलने वाली प्रक्रिया है! समाधि के द्वारा व्यक्तियों के प्राप्त किये झूठे अनुभव हमेशा उसके धार्मिक भ्रमों के अनुसार ही होते हैं! एक ईसाई को समाधि के द्वारा ‘जीहोवा के दर्शन हो सकते हैं जो स्वर्ग में सोने के सिंहासन पर विराजमान है, उसके दायीं तरफ ईसा मसीह है, उसके चारो तरफ सुन्दर पंखों वाले देवता गीत गा रहे हैं! एक हिन्दू को समाधि के द्वारा ब्रह्मा के दर्शन हो सकते हैं जिनके तीन या पांच सिर है, जो कमल में विराजमान हैं! LSD, गांजा, अफ़ीम इत्यादि इस प्रकार के झूठे द्रश्य उत्पन्न कर सकते हैं! कुछ व्यक्ति गहरी समाधि के द्वारा क्रिप्टोम्नेशिया (Cryptomnesia) नाम की बीमारी के शिकार हो जाते हैं! इस बीमारी वाले व्यक्ति को पागलों जैसा यह विश्वास हो जाता है कि वह दैवीय शक्तियों वाला व्यक्ति है! अनपढ़ और भोले लोग जब मानसिक बीमारी के शिकार होते हैं, तो उन्हें पागल घोषित कर दिया जाता है! वहीँ अगर किसी बुद्धिमान और चालाक व्यक्ति को मानसिक बीमारी घेर ले तो वह अपने श्रोताओं या पाठकों को यह विश्वास दिला देता है कि उसमे ब्रह्मज्ञान, अंतिम सच्चाई और परमात्मा में लीन होने वाले गुण प्राप्त हो गए हैं! ऐसे व्यक्ति आम तौर पर किसी धर्म के प्रचारक या उसकी नींव डालने वाले बन जाते हैं!

  1. झूठे विश्वासों से उत्पन्न भ्रम : यह बचपन में धर्म के प्रति विश्वास पैदा करने के कारण होता है! भूतप्रेत, शैतान, परियां, फ़रिश्ते, ज्योतिष, श्राप, पवित्र जल, शुब समय, शुभ स्थान, शुम वस्तुए, शगुन, अपशगुन, स्वर्ग, नरक इत्यादि झूठे विश्वास हैं!

जैसा की श्री मैनन नें कहा है कि कुछ व्यक्ति अपने मन की प्रसन्नता दुसरे अन्धविश्वास से प्राप्त करते हैं, ठीक ऐसे ही परिणाम L.S.D., गांजा, अफीम का प्रयोग करके भी प्राप्त किये जा सकते हैं! परन्तु प्रश्न यह नहीं है कि किस तरह का प्रयोग शांति या प्रसन्नता प्रदान करता है, बल्कि प्रश्न तो यह है कि क्या यह सत्य है?


संदर्भ ग्रंथ: 1. अब्राहम कोवूर की पुस्तक “और देव पुरुष हार गए”, 2. विकिपीडिया